पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२६७

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका पीत चन्दन दो चीजें नहीं है। चन्दनवृक्षमें बहुसंख्यक छोटे प्रथमावस्थामै फीके और बादको बैंगनी फूल होते हैं। फल गोल और मसूण होते हैं जो पकनेपर काले हो जाते हैं। तथापि कविजन इसके फल और पुष्पका वर्णन नहीं करते। यद्यपि कविसमयके अनुसार चन्दनमें फल-पुष्पका वर्णन नहीं होता पर रामा- यणमें इसका पुष्पित होना वर्णित है। परवर्ती कवियोंमेंसे भी किसी किसीने इसके फल-फूलका वर्णन किया है। चन्दन के बारे में एक दूसरी प्रसिद्धि यह है कि यह केवल मलय पर्वतपर ही होता है। आयुर्वेदिक ग्रन्थोंके अनुसार स्थान-भेदसे पाँच प्रकारके चन्दन बताये गये हैं। भद्रश्री मलयपर्वतपर होता है; गोशीर्ष ,वर्कर और लैलपर्ण इन्हीं नामों के पर्वतोपर होते हैं। वे और सुक्कड़ एक ही चीज हैं: एक कच्चे कटे वृक्षसे आता है, दूसरा स्वयंपके वृक्षसे । किसी किसीके नतसे मलयज चन्दन तथा वेट्ट और तुक्कड़ एक ही चीज हैं। ब्राण्डिसने लिया है कि यह वेस्टर्न पेनिन्सुलामें नासिकसे लेकर उत्तरी अर्काटके जिलोंतक प्रचुर परिमाणमें उत्पन्न होता है। बागीचोंमें लगानेसे उत्तर भारतमें सहारनपुरतक उपजते देखा गया है । इसके फूल फ़रवरीसे जुलाईतक खिलते रहते हैं। इस कवि-प्रसिद्धिका मूल शायद यह हो कि मलयपर्वतपर ही यह बहुतायतसे होता है। राजशेखरने मलयपवर्तकी चार विशेषताओं मेंसे एक यह बताई है कि इस पर्वतपर सर्पवेष्टित चन्दनके वृक्ष होते हैं । इस पर्वतपरके नीम, कुटज आदि वृक्ष भी चन्दनके समान सुरभित हो जाते हैं, ऐसा कविगण वर्णन करते हैं: १५ चम्पक (चम्या) कवि-प्रसिद्धि है कि रमणियोंके पद्ध-मुहास्यसे चम्पा पुष्पित हो जाता है। वह भारतवर्षका परिचित पुष्प है। इसके फूल पीले नारंगी रंगके होते हैं। १ वनौषधिदर्पण पृ०२५२-६ ॥ २-३ वहीं । ४ रामायण ४-१, ८२-८३। ५ सुभाषित- रलभांडागार पृ० ३७७ । ६ काव्यमीमांसा १४; अलंकारशेखर १५, अलंकाराचंतामणि ७-८ ! ७ वनौषधिदर्पण । ८ Brandis : Indian Trees P.553 ९ काव्य- मीमांसा १७ अध्याय । १० सुभाषितरत्नभांडागार पृ० ३९९ । ११ मेवदूत २११७ मछिनायकी टीज़ा। - -.-.-.-