पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२६६

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कवि-प्रसिद्धियाँ - - कालमें अन्यत्र चला जाता है। एक अन्य जातिका चक्रवाक शरत्कालमें भारत- वर्ष में आता है और साल-भर अन्यत्र रहता है। कालिदासके रघुवंश आदि ग्रंथोसे जान पड़ता है कि उन्होंने इस पक्षीको सारे भारतवर्ष में देखा था। असलमें यह सारे भारतवर्षमें पाया भी जाता है। चकवा- चकईकी वियोग-कथाकी सचाईकी अच्छी जाँच अभी नहीं हुई है। स्टुआर्ट बेकरने रातमें पक्षि मिथुनको वियुक्त भावसे विचरण करते देखा था। वे एक दूसरेको उत्कंठाभरी आवाजसे पुकारत-से जान पड़ते थे । कालिदासने परस्पराक्रन्दी चक्रवाकोंका उल्लेख किया है। हिस्लरने लिखा है कि ये पक्षी दिनमें अपने जोड़ेके साथ बैठकर या खड़े रहकर आराम करते हैं। दिनमें ये बहुत कम ही विचरण करते हैं। अगर कहीं चले भी तो साथ ही साथ। किन्तु रातमें अलग होकर आहार-चयन करते हैं। रामायणमें इनके सहचारी होकर विचरण करनेका उल्लेख है । रातको शायद आहार-चयनार्थ इनका विमुक्त होना ही कविप्र- सिद्धिका मूल है। यह पक्षी प्रधानतः उद्भिज्जाशी है। कालिदासने इन्हें उत्पल-केसर भक्षण करते वर्णन किया है। ऋतुसंहारमें कमल-केसर भक्षण करते हुए और परस्पर क्रन्दन करते हुए चक्रवाकोंका वर्णन मिलता है। १४ चन्दन कविसमयके अनुसार चन्दन में फूल और फलका वर्णन नहीं होना चाहिए। भावप्रकाशमें श्वेत, पीत और रक्त इन तीन प्रकारके चन्दनोंका उल्लेख है। पीत चन्दनको ही कालीयक और हरिचन्दन कहा गया है। धन्वन्तरिके मतसे चन्दन और श्वेतचन्दन एक ही चीज़ हैं । मलय पर्वतपर जो चन्दन होता है उसे भद्रश्री कहते हैं। तैलपर्ण और गोशीर्ष पर्वतपर भी इन्हीं पर्वतोंके नामवाले चन्दन होते हैं बनौषधिदर्पणकार अनेक शास्त्रीय चर्चाके बाद स्थिर करते हैं कि श्वेत और १ जलचारी, पु. ११०। २ Ducks and Their Allies.1921.P.P. 1-16-कालिदासेर पाखीमें उद्धृत । ३ कुमार०५-२६ । ४ A Popular Hand Book of Indian Birds (1928)P.407, ५ रामा० ४-३०-२०१६ सत्यचरण लाडा-कालिदासेर पाखी पृ० १२७ १७ काव्यमीमांसा, अध्याय १३, साहित्य- दर्पण ७-२५. अलंकाशिखर १५, इत्यादि । ८ कर्पूरादिवर्ग १४-१६ ।