पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२६५

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका चकोरके चद्रिका-पानका वास्तविक आधार है। पक्षितत्वज्ञोंने लक्ष्य किया है कि यद्यपि चकोर रह रहकर दिनमै भी बोल उठता है पर सन्ध्या समय यह अत्यन्त मुखर हो उठता है । इस मुखरतामें भावुक पक्षि-मर्मज्ञोंको उत्सुकताका मिश्रण अनुभूत हुआ है 1 १३ चक्रवाक-मिथुन (बकवा-चकई ) यह हंस-जातिका पक्षी है। दिनमें सदा चक्रवाक जोड़ों में ही पाये जाते हैं। भारतीय भाषाओंके काम्यग्रंथ इस पक्षीके प्रणयाख्यानसे भरे पड़े हैं। कवि-सम्य- दाय यह है कि चक्रवाक और चक्रवाकी दिनमै नदी या जलाशयके एक ही किनारे रहते हैं पर रातमें अलग अलग हो जाते हैं, पुरुष इस किनारे पड़ा रह जाता है तो स्त्री उस किनारे । सारी रात वियोगमें कटती है | अभिवेश रामायणकी कथा है कि स्त्री-वियोग, कातर रामको देखकर चक्रवाकोने हँसी उड़ाई थी। परिणामवश उन्हें इस प्रकार वियुक्त होनेका अभिशाप-भागी होना पड़ा । राज- शेखरने इसे कवि-समयके अन्तर्गत मानकर इस विश्वासकी सचाईपर संदेह किया है। सुश्रतके टीकाकार डल्हण भट्टने चक्रवाकके परिचयमें इसका निशाबियोगी होना बताया है । कालिदासके ग्रन्थोंसे इस विश्वासका समर्थन होता है। पौष मासमें नदीमें तपश्चरण करती हुई पार्वती वियोगसे कातर चक्रवाक-मिथुनोंकी कातर पुकार सुनती हुई काल काटा करती थीं। पक्षि-विद्याके प्रसिद्ध पंडित श्री सत्यचरण लाहाने लिखा है कि यह पक्षी भारतवर्षका स्थायी अधिवासी नहीं है। चैत्र, वैशाखमें यह हिमालवकी ओर यात्रा करता है । देखा गया है कि १४-१५ हजार फुट ऊँचे पर्वतोंके गौमें यह अपना नीड़ निर्माण करता है। उक्त विद्वान्ने स्वयं सिकिम और हिमालयके पर्यटन कालमें छांगूह्रद (१२६०० फूट) में इनको वास करते जून मासमें देखा था । शरत्कालमें ये फिर भारतवर्षको लौट आते हैं। वाल्मीकीय और तुलसीदासके रामायणोंसे जान पड़ता है कि यह पक्षी वर्षा- १ कालिदासेर पाखी पृ० १४८१R Humeand Marshell :The Game Birds of India, Burmah and Ceylone.Vol, 11 (1879) P.33 quoted in झालिदासेर पाखी। ३ काव्यमीमांसा १४, अलंकारशेखर १५: अलंकारचिन्तामणि ७-८ आदि 1 ४ कादंबरीकी टीका इस कथाका उल्लेख है। सूत्रस्थान ४६,--१०५ / ६ वाल्मीकीय रामायण ४-२८-१६ । किष्किन्धाकाण्ड ।