पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२६४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कवि-प्रसिद्धियाँ २४१ मण्डपका बेड़ा कुरव क था। मालविकामिमित्रके अन्तिम अंकसे जान पड़ता है कि वसन्तकी प्रौढ़ावस्थामें कुरवकके फल गिरने लग जाते हैं। इन दो बातोंसे भी कुरवक पुष्पका कटसरैया होना ही ठीक जान पड़ता है। ११ कोकिल कविसमय है कि कोकिल केवल बसन्तमें ही बोलते हैं। यह सच है कि ग्रीष्म और वषों में भी कोकिल बोला करता है, पर उसके स्वरमे जो मिठास वसंतमें होती है, वह अन्यान्य ऋतुओमें नहीं । शरत्कालसे लेकर शिशिरतक को- किल ऐसा मौन रहता है कि कई वैज्ञानिकोंतकको भ्रम हो गया है कि यह पक्षी शीतकाल में यह देश छोड़कर अन्यत्र चला जाता है किन्तु हिस्लरले लक्ष्य किया है कि कोकिल भारतवर्षमें ही एक स्थानसे दूसरेको ऋतुओंकी सुविधाके अनुसार जाता आता रहता है। कुछ अत्यधिक शीतल स्थानोंको छोड़ दिया जाय तो ग्रायः सारे भारत में प्रायः साल भर यह पक्षी पाया जाता है और चुपचाप पत्रान्तरा. लमें लुक-छिप कर काल यापन करता है। आश्चर्य की बात यह है कि अन्य ऋतुओं- में इसका मौन शायद ही कभी भंग होता हो वसन्त काल में यह पक्षी, जबतक. गर्भाधान नहीं हो जाता, तबतक मत्तभावसे कूजन करता रहता है- पुस्कोकिलश्चूतरसासवेन मत्तः प्रियां चुम्वति रागदृष्टः । कोकिलको कवियोंने वसन्त और मदन दोनोंका साधन वर्णन किया है ! यद्यपि आलङ्कारिकोंका यह कहना सही है कि कोकिल वसन्तके अतिरिक्त अन्य ऋतुमें भी बोलता है। पर यह और भी सही है कि वसन्तका कूजन ही अद्वितीय और अपूर्व होता है। शरत्से हेमन्त तक तो यह शायद ही कभी बोलता हो । १२ चकोर चकोर चन्द्रिकाका पान करते हैं। अमरकोषके टीकाकार क्षीरस्वामीने लिखा हैं कि चकोर चंद्रिकासे तृप्त होते हैं। चकोर और मयूर एक ही जातिके पक्षी हैं। कान्याम जिस प्रकार मयूरके शुक्लापाङ्गका वर्णन पाया जाता है, उसी प्रकार १माल०५-४ १२ काब्वमीमांसा १४: अलंकारशेखर १५, कविकल्पलता द्वि० प्रतान अलंकार चिन्तामणि । ३ कालिदासेर पाखी पृ० ११०१४ A Popular Hand Book of Indian Birds, P.252.५ कालिदासेर पाखी पृ० ११० १६ऋतु- संहार ६६७ऋतुसंहार ६८ काव्यमीमांसा १४; साहित्य दर्पण ७-२३ १९ अमर, ५-३५ टी० हे।