पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२६१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हिन्दी साहित्यकी भूमिका ही पाँच कामदेवके बाण हैं। एक पौराणिक आख्यान इस प्रकार है : ब्रह्माने संध्या नामक एक कन्याको उत्पन्न किया। लड़की ज्यों ही पैदा हुई कि ब्रह्मा और उसकी लड़की दोनोंके मनको कामने अपने बाणोंसे विक्षुब्ध किया। इससे प्रजापति और सन्ध्या दोनों बहुत लज्जित हुए । सन्ध्याने बादको घोर तप करके विष्णुसे यह बर माँग लिया कि अबसे पैदा होते ही किसी आदमीको काम विक्षुब्ध न कर सके। तबसे विष्णुने नियम कर दिया कि काम केवल युवकोंका ही मन या हृदय विद्ध कर सकता है और क्वचित् कदाचित् किशोर-किशोरियोंका। कवियों ने कामक बाणोंसे युवक युवतियोंके हृदयका फटना अनेक प्रकारसे वर्णन किया है। (२) ऊपर जो प्रजापति और संध्याकी कहानी दी हुई है उसीके अनुसार 'प्रजापतिने कामको यह शाप दिया कि वह शिवके नेत्राग्निसंभूत अनिमें जले। कामदेव जब इस शापवश भस्म हुआ तो उसकी स्त्री रतिने कठिन तपश्चरणसे शिवको सन्तुष्ट किया और यह वर पाया कि काम अमूर्त भावसे ही प्राणियों में सञ्चरित होगा और द्वापरमें श्रीकृष्णके पुत्र प्रद्युम्नके रूपमें मूर्त रूप ग्रहण करेगा। तबसे कामके मूर्त और अमूर्त दोनों रूपोंका कविजन वर्णन करते आये हैं। यह लक्ष्य करने की बात है कि मूर्तियोंमें काम और रतिकी मूर्तियाँ सर्वत्र साथ ही उत्कीर्ण पाई गई हैं। कामदेवके और वरुणके तथा अन्यान्य यक्षों और यक्षिणियों के रूप में मकरका इतना अधिक और इतने प्रकारसे भारतीय शिल्पमें चित्रण है कि उसके विषयमें का विशेष कहना व्यर्थ है। बादामी, कैलासनाथ, एलोरा, आदिमें मकरध्वजके साथ काम और रतिकी मूर्तियाँ पाई गई हैं। मकरकेतन और झषकेतन एकार्थ- याचक हैं, इसपरसे आनन्द स्वामीका अनुमान है कि शतपथ ब्राह्मण (१-८-१)का भगवाला झष और मकर एक ही वस्तु हैं। वास्तवमें इस प्रकारके मकर उत्कीर्ण भी हैं । सन् ईसवीसे पूर्वके मकरध्वज वेसनगरमें प्राप्त हुए हैं। कुन्दका पुष्प सफेद रंगका होता है। यह सारे भारतवर्ष में पाया जाता है। रामायणमें वसन्तके समय इसके खिलनेका उल्लेख है। इसके कंडमल ठीक १ काव्यमीमांसा, अन्याय १६ । २ कालिकापुराण अध्याय १९-२२ । ३ Yaksa 11. P.25. और भी दे० शीर्षक ४॥ ४ वही पृ०५२ । ५ रामायण ४-१-७७।