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हिन्दी साहित्यकी भूमिका
 


निबंध-ग्रंथोंकी परम्परा बढ़ने लगी । हमारे आलोच्यका इस शाखासे विशेष सम्बन्ध है।

धर्मशास्त्रीय वचनोंकी छानबीन करके लोक-जीवनके व्यवहारके लिए उपयोगी विधियोंकी व्यवस्था देना निबन्ध-ग्रंथोंका कार्य है । कौन-सा व्रत या उपवास कब करना चाहिए, किसे करना चाहिए, किसे नहीं करना चाहिए, विवाहादि अनुष्ठानोंकी छोटी-मोटीसे लेकर बड़ी बड़ी विधियों का निर्देश, उनके अधिकारी या अनधिकारीका निर्णय आदि लोक-जीवनसे सम्बद्ध छोटी मोटी सैकड़ों बातोका विचार, विश्लेषण और व्यवस्थापन इन ग्रंथों में किया गया है । आधुनिक युगके पाठकको जो बात नितान्त अकिञ्चित्कर और निष्प्रयोजन जान पड़ सकती है उसके लिए इन अन्थोंके पन्नेके पन्ने रंगे हैं। यह बात यहा प्रत्यक्ष है कि शास्त्र लोक-जीवन के साथ घनिष्ठ रूपसे जड़ित है। सिन्धसे लेकर आसाम तक इन निबन्धोंका प्रचलन है। ऐसा समय तो कभी नहीं रहा होगा जब विवादास्पद विषयोपर पण्डितोंकी सम्मतियाँ न ली जाती हों, और इसीलिए ऐसा भी समय नहीं होगा जब इन निबन्धोंकी जातिके ग्रन्थ न लिखे गये हों-वस्तुतः इस जातिके ग्रंथ सन् ईसवीसे भी बहुत प्राचीन कालमें बनने लगे थे, परन्तु, इस युगकी अन्यान्य बातोंको जिस प्रकार इन निबन्धोंने छाप लिया वैसा कभी नहीं हुआ होगा। यह स्मरण रखने की बात है कि हिन्दू धर्म ईसाइयोंके धर्मकी भाँति बड़े बड़े मठों या चर्चों द्वारा नियन्त्रित नहीं था (जैसा कि पोपोंके रोमन-चर्चद्वारा ईसाई धर्म नियं-



व्याख्याओंको टीका नहीं कहते । कमसे कम शब्दोंसे जब अधिकसे अधिक अर्थ प्रकट करनेकी कोशिश की जाती है तो इन छोटे छोटे वाक्योंको सूत्र कहते हैं। जिसमें सूत्रोंके सार मर्म बताये जाते हैं उसे वृत्ति कहते हैं। सूत्र और वृत्तिके परीक्षणको पद्धति कहते हैं। सूत्र और वृत्तिमे बताये गये सिद्धान्तों पर आक्षेप करके फिर उनका समाधान करके उन सिद्धान्तोंके स्पष्टीकरणाको भाष्य कहते हैं। भाष्य के बीचमें जो विषय प्रकृत हो उसे त्यागकर और दूसरे उसीसे सम्बद्ध किन्तु अप्रकृत विषयोंका जो विचार किया जाता है उसे समीक्षा कहते है। इन सबमें बताये गये विषयोंका टीकन या उल्लेख जिसमें हो उसे टीका कहते हैं । सिद्धान्त मात्रका जिसमें प्रदर्शन हो उसे कारिका कहते हैं और मूल अन्धके कथन के औचित्य-विचारको वार्तिक कहते हैं। इनमें सूत्र वार्तिक और कारिकाके सिवा बाकी जितने हैं उन सबको यहाँपर एक साधारण शब्द 'टीका' द्वारा प्रकट किया गया है ।