पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२५९

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· हिन्दी साहित्यकी भूमिका भावप्रकाशके मतसे इस वृक्षके दो नाम और हैं, परिव्याध और पद्मोत्पल'। लेकिन इन नामोसे इस पुष्पके संबंध विशेष कुछ जाना नहीं जाता ! राजनिधतुकारके मतसे क्षुद्र आरग्वधको ही कर्णिकार कहते हैं। आरग्वधको हिन्दी में अमलतास कहते हैं । अंगालमें यह 'सोनालु गाछ या सुनहरा वृक्ष कहलाता है। शान्तिनिकेतनमें आरग्वधके वृक्ष हैं। इसके फूल पीले और फल लंबी लंबी कड़ी छोमियोंके रूपमें होते हैं जिनमें पंक्तिबद्ध बीज होते हैं। वनौषधिदर्पणकारक मतसे कर्णिकारके ये ही लक्षण हैं । अमलतासका वृक्ष वैशाख-जेठके महीनेमें फूलता है, किन्तु छोटा अमलतास या लघु आरग्वध कुछ पहले ही फूलता है। रामायणमें वसन्त-वर्णनके अवसरपर कार्णकारके सुनहरे पुष्पोंका वर्णन मिलता है। इससे वृक्षकी यष्टिसमान आकृतिका भी आभास मिलता है। असल में कर्णिकार वृक्ष नातिस्थूल होता है । महाकवि कालिदासने वसन्तमें कर्णिकार पुष्पोंको खिलते देखा था। उनके मतसे भी कर्णिकारके फूल सुनहरे होते हैं। इसी प्रकार राजशेखरने वसन्तमें ही कर्णिकार वृक्षका प्रस्फुटित होना बताया है। कवियोंने कर्णिकार-पुष्पको निर्गध कहा है। इन सब बातोंको ध्यानमें रखकर विचारनेसे कोई संदेह नहीं रह जाता कि क्षुद्र आरग्वध या छोटे फलोंवाला अमलतास ही कर्णिकार है । ब्रांडिसन इसे केसिया (Cassia) जातिका वृक्ष माना है। उनके वर्गीकरणके अनुसार यह और अशोक एक ही श्रेणीके वृक्ष हैं। कालिदासने प्रायः ही कर्णिकार और अशोककी एक साथ चर्चा की है। उस युगमें सुन्दरियाँ कभी कानमें और कभी केशमें कर्णिकार और अशोक पुष्पोंको धारण करती थीं । ऋतुसंहारमें कानमें नवकर्णिकार-पुष्प और चंचल नील अलकोंमें अशोक पुष्प सुशोभित दिखता है, तो कुमारसंभवमें पार्वती नील अलकोंमें नवकर्णिकार-पुष्पोंको धारण किये दिखती हैं । महाकविने शायद इसके रगक कारण ही इसमें अग्निस्यका आभास पाया था। कर्णिकारका वृक्ष अयत्नसम्भूत होता है और सारे भारतवर्ष तथा ब्रह्म १ भावप्रकाश, पुष्पवर्ग ४० । २ वनौषधिदर्पण ( १८३२ शक ) पृ० ७६ १ ३ रा० ४-१-२१ । ४ रा० ४-१-७३ । ५ ऋतुसंहार ६५१ ६ कुमारसंभव ह.५३ । ७ काव्यमीमांसा, अध्याय १८१८ कुमारसंभव ३-२८ १९ ऋतुसंहार ६५, कुमारसम्भव ३-६२ । १०ऋतुसंहार ६। फूलोंवाला अनी उनके वर्गीकरण और अशोककी एक