पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२५८

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कवि-प्रसिद्धियाँ २३५ एक दूसरी कविप्रसिद्धि है कि सुन्दरियोंके पदाघातसे अशोकमें पुष्प खिल आते है । राजशेखरने कविसमयके प्रसङ्गमें इसका कोई उल्लेख नहीं किया तथापि उनकी काव्य-मीमांसा में ही इस विश्वासके पोषक उदाहरण मिल जाते हैं। 'महाकवि कालिदासको इस विश्वासकी जानकारी थी। मालविकाग्निमित्रके तृतीय अंककी सारी कथा मालविकाके पदाघातसे अशोक वृक्षको पुष्पित कर देनेकी क्रियाको केन्द्र करके रचित हुई है। कुमारसंभवमें वसन्तका माहात्म्य वर्णन करते हुए महाकविने बताया है कि अशोक स्कन्धपरहे पल्लवित और कुसुमित हो गया, उसने सुन्दरियोंके आसिञ्जितनू पुर चरणोंकी अपेक्षा न की । रत्नावली नाटिकामें भी इस विश्वासका समर्थन पाया जाता है। बाद के कवियोने तो इसका भूरि भूरि वर्णन किया है। अलंकारिकोंने यह नहीं बताया है कि अशोकपर पदाघात करते समय स्त्रीके पैरमें नूपुर रइना आवश्यक है या नहीं आर न यही बताया है कि स्त्रीके किस पैरकी चोटले अशोक वृक्ष पुमोद्गम होता है। कुमारसंभव (३-२६) की व्याख्यामें मल्लिनाथने एक शोक उद्धृत किया है जिसमें बताया गया है कि नृपुरके शब्दसहित चरणों के आघातसे ही अशोक कुसुमित होता है। मेवढ़तके वक्षने मेघसे अपने उद्यानके अशोक वृक्षके वर्णनके सिलसिलेमें कहा है कि वह तुम्हारी सखी (यकिणी) के वामपादका अभिलाषी है। उत्कीर्ण मातियों में अशोकदोहढ-समुत्रादिनी यक्षायों के बाम बैर ही वृक्ष आघात देनेके लिए उठे हुए अंकित है । राजनिघण्टु के अनुसार अशोकका एक नाम वामांधियातन भी है। इसमेंका वामांघिपट 'वायाँ चरण' और 'स्त्रीका चरण' दोनोंका वाचक हो सकता है: ६ कर्णिकार कर्णिकार वृक्षके आगे स्त्रियाँ अगर नृत्य करें तो वह पुष्पित हो जाता है"। १ साहित्यदर्पण ७-२४, मेघदूत २-१७ महिनाथ टीका, कुमारसंभव ३-२६ महिनाथकी टीका; अलंकारशेखर १५ १ २ ३० श० २१३ मालविकाशिमित्र ३-१३ ! ४ कुमार३-२६१५ रत्नावली १-१५ । ६ सुभाषितरत्नभाण्डागार ३० ३७९१ मेवदून २-१७ ॥ ८A.K.Coomarswamy. Yaksa. pl. 6. ic.i and 8, ९शब्दकल्पगुम, प्रथम खण्ड, पृ० १३७ । १० मेघदूट २-१७ पर महिनाथकी टीका ।