पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२५७

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका कारोंने दो तरहके अशोकके पुभ लक्ष्य किये हैं, लाल और सुनहरा। रामायणमें अशोक-पुष्पके अंगारसमान स्तवकों ( गुच्छों) का वर्णन पाया जाता है। राजशेखरने अपनी काव्यमीमांसा, अशोकके तीन प्रकारके पुष्पोंका वर्णन किया है: लाल, पीत और नील रामायण (वाल्मीकीय) में भी नील अशोक-पुष्पोंका वर्णन पाया जाता है । कालिदासने सुन्दरियोंके नौल अलकमें पिरोये अशोकपुष्पोंका उल्लेख किया है। वसन्तकालमें, कविने बताया है कि, केवल अशोकके पुष्प ही उत्तेजक नहीं हैं, उसके किसलय भी प्रियाके श्रवण-मूलमें विराजमान होकर मादक हो गये हैं। उन दिनों अशोक, अरिष्ट, पुन्नाग, शिरीष और प्रियंगुके वृक्ष मांगल्य समझे जाते थे और उपवनों और प्रासादोंके अग्र भागमें लगाये जाते थे। इसीलिए उस युगके कवियोंकी दृष्टि सबसे पहले इन वृक्षोंपर पड़ती थी । कालिदासको यह वृक्ष अत्यन्त प्रिय था। कुमारसम्भवमें अशोकपुष्पाभरण-धारिणी उमाके सौन्दर्यका बड़ा सुन्दर वर्णन है। मल्लिनायने अशोककल्पसे "एक श्लोक उद्धत करके बताया है कि अशोक पुष्प दो प्रकारका होता है, श्वेत और रक्त । पहला सर्वसिद्धिदायक है और दूसरा (लाल) स्मरवर्द्धक है। इसीलिए कालिदासने लाल फूलका ही वर्णन किया है। यद्यपि यह वृक्ष कवियों को इतना प्रिय रहा है तथापि यह आश्चर्यकी बात है कि इसके किसलय और पुष्पके सिवा और किसी अङ्गका वर्णन नहीं किया गया। बहुतमे कवियोंने तो साफ़ लिखा है कि इसके फल नहीं होते जब कि असलमें अशोक वृक्षके फल होते हैं । फूल इसके गुच्छाकार होते हैं। कालिदासने इन गुच्छोंका वर्णन किया है । पहले इनका रंग पके नीबूके फलके रंगका होता है और बादमें लाल हो जाता है। इसके पत्र-प्रान्त ईषत् तरङ्गायित होते हैं । तरणावस्थामें पत्ते लम्बे लम्द लाल रहते हैं। बादमें हरे हो जाते हैं। इसके फल छीमियों के रूपमें होते हैं" ब्राण्डिसने दो तरहके अशोकोंका उल्लेख किया है। १ वाल्मीकी रामायण ४-१-२९ १२ काव्यमीमांसा १८१३ वा० रा० ४-१-७९ । ४ ऋतुसंहार ६५९ रघुवंश५।६ बृहसहिता ५५-३ । ७ कुमारसंभव ३-५३ 1. ८ मेवदूत २-१७ पर मल्लिनाथकी टीका । ५ काव्यमामांसा १४ । १० रघुवंश १३ । ११ विरजाचरण गुप्त : वनौषधिदर्पण पृ० ४६ । १२ Brandis; Indian Trees; P. 15 and 25.