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कवि-प्रसिद्धियाँ बृक्षदोहदका तो यक्षपूजासे प्रत्यक्ष सम्बन्ध है ही, अन्यान्य बातोका भी यथेष्ट सम्बन्ध है। इससे यह बात काफी स्पष्ट हो जाती है कि सर्वत्र जन्मशवों में कमलका वर्णन इसलिए किया जाता है (दे० शीर्षक १९) कि कमल जल और जीवनका प्रतीक है। इसी प्रकार सर्वत्र जलाशयोंमें हंसोंका वर्णन करना भी कवियोका सम्प्रदाय है क्योंकि हंस-मिथुन यश्च और दक्षिणियोंके प्रतीक है जो जल और वृञ्चोंके तथा रत और उपरताके देवता है। प्राचीन कालमें नव-वधूक परिधान-दुकूल पर इंस-मिथुन अंकित हुआ करते थे। यह मंगलमय सनझा जाता थी क्योंकि हंस-मिथुन उर्बरता और रसके प्रतीक माने जाते थे। केवल कान्य ही नहीं, मन्दिरों, स्तम्भों आदिर भी हिन्द्र कलाकारोंने सर्वत्र नदी, तालाब और समुद्र में इंस-मिथुन और कमल प्रचुर मात्रा अंकित किये हैं। इसी प्रकार मकरका वर्णन केवल समुद्र में ही होना भी इस तरह स्पष्ट हो जाता है (दे० शीर्षक ३२-१)कि मकर समुदका ही प्रतीक और वरुणका वाहन है। इसी तरह कामदेवके पुष्षमय वाणांकी प्रसिद्धिका मूल कारण, (दे० शीर्षक १.) लक्ष्मी और सम्पद्की एकता (शीर्षक ३१) तथा लक्ष्मीका कमल-वास (शीर्षक ११-४) इत्यादि अनेक बातें स्पष्ट हो जाती है। कविप्रसिद्धि है कि अशोकमें फल नहीं होते। इस वृश्चके विषयमें वैद्रों में मतभेद है । पूर्वी युक्तप्रान्त और बिहार में एक तरहके प्रलंब और तरङ्गायित पत्रोंवाले वृक्षको 'अशोक' कहते हैं। इसके फर काले काले और गोल गोल होते हैं। बैद्य लोग भी इसका व्यवहार करते हैं। पर अन्यान्य प्रदेशके वैद्य इसे अशोक नहीं मानते। यह असलमें अशोक है भी नहीं। सुश्रुतकी टीका बहाने लिखा है कि अशोकके पुष्प लोहित या लाल होते हैं। निवण्द्वकारोंने इसका नाम कपल्लव, मधु-पुष्प बताया है । इन नामोंसे अनुमान होता है कि यह वसन्तमें खिलता है, फूल सुनहरे और पल्लव लाल होते हैं । अर्थात् वैद्यक-शास्त्र १ तु. कुमारसंभव ५-६७ । २ काव्यमीमांसा अध्याय १४; साहित्यदर्पण --२५% भरिकारशेखर मन्धिः १५१३ सुश्रुत, सूत्रस्थान, अध्याय ३८१४ भावप्रकाश, पुष्पवर्ग