पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२५५

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका (उत्तराध्ययन टीका जैकोबी पृ० ३९) थे। वेस नगरमें शुंगका (तृतीय शताब्दी ईसवी-पूर्व) का एक मकरध्वज स्तंभ तीन कुट ऊँचा पाया गया है जो ग्वालियर म्यूजियममें सुरक्षित है। बदामीमें रातके साथ मकरवाहन और मकरकेतन काममूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। पंडितोंका, इसीलिए, अनुमान है कि कामदेव और यक्षाधिपति बरुण मूलतः एक ही देवता हैं। और नहीं तो कमसे कम एक ही देवताके दो भिन्न रूप तो हैं ही (बुद्धचरित १३-२)। बौद्ध मार यक्ष कामदेवका रूप है ही। पौराणिक आख्यानोंसे यह प्रकट ही है कि कामदेवके प्रधान सहायक गंधर्व और अप्सराएँ हैं। कामदेव स्वयं उर्वरता और प्रजननके देवता हैं । यचों और यक्षियोंका संबंध सदा वृक्षों और जलाशयोंसे रहा है। इसी लिए कामदेव भी स्वभावतः वृक्षों के देवता सिद्ध होते हैं । वसन्त उनका मित्र है जो वृक्षोंमें नवजीवन सञ्चार किया करता है, धनुष्य और बाण उनके पुष्पमय हैं। मकरका भारतीय संस्कृति और कान्यकलामें एक विशिष्ट स्थान है क्योंकि वरुण समुद्रके अधिपति हैं और मकर समुद्रका प्रतीक है। जलका एक और प्रतीक है कमल । शतपथ ब्राह्मण (७-४-१-७ ) में जलको कमल कहा गया है और यह पृथ्वी उस कमलका एक दल कही गई है। प्राचीन रञ्जनशिल्पमें कमलका इसीलिए इतना प्राचुर्य है कि वह जलका और फलतः जीवनका प्रतीक होनेसे अत्यन्त मङ्गलमय समझा जाता था। कमलमें ही वरुण और उनकी स्त्री गौरी वास करती हैं। समुद्र रत्नालय है और वरुण समुद्राधिपति । इसीलिए उन्हें लक्ष्मीनिधि माना जाता था। बादमें यह शब्द कुबेरका वाचक हो गया । मगर यह एक लक्ष्य करनकी बात है कि समुद्रोत्पन्न लक्ष्मीका, जो बादमें विष्णुकी पत्नी हुई, एक नाम वरुणानी भी है। कवि-प्रसिद्धिके अनुसार लक्ष्मी और संपद् एकार्थक हैं (दे० शीर्षक ३१) और कमलमें लक्ष्मीका वास है। इस प्रसङ्ग में वरुणानी शब्द काफी संकेतपूर्ण है। अब यक्ष-पूजा और अनेक कवि-प्रसिद्धियोंका सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। १Cunningham : A. S. Reports P. 42-43 और plate XIV. २ R.D. Banerji: Bas Reliefs of Badami, Mem,A. S. I. 25, 1928, P. 34. ३ विशेष विस्तारके लिए देखिए A.K.Coomaraswami : Yaksa Vol II.