पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२५४

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कवि प्रसिद्धियाँ उत्तर वैदिक कालमें आर्य लोग इन्हें लक्ष्य करने लगे। सोम इन्हीं गन्धवाके हाथमें था (शत० ३-३-३-११) ऐतरेय ब्राह्मणके अनुसार यज्ञमें इन्द्रका प्रतिनिधि गंधवासे सोम क्रय करता है । कुमार स्वामीने प्रमाण पुरन्सर सिद्ध किया है कि गन्धर्व वृक्षोंके अधिष्ठाता और अप्सराएँ उर्वरताकी अधिष्ठात्री देवियाँ मानी जाती थीं यक्ष, प्रथम भाग-पृ०३२३३) हम यक्ष और यक्षियोंके वृक्ष और उर्वरताकी अधिष्ठात्री होने की चर्चा कर चुके हैं। असल में यक्ष और यक्षिणी और गंधर्व और अप्सरा एकार्थवाचक देवता हैं। शुरूमें ये कुवरके अनुचर माने जाते थे । पर जब हिन्दूधर्ममें इस प्रकारकी प्रवृत्ति आई कि आर्येतर देवताओंमें जो उत्तम हैं वह इन्द्र के पास होना चाहिए और भी बादमें ये वस्तुएँ उपेन्द्र या विष्णुकी होने लगीं) तो गन्धर्व और अध्यरस तो इन्द्रके अनुचर हो गये और साधारण अर्थवाचक यक्ष और यक्षिणी कुबेरके अनुचर माने जाते रहे ! यहाँ एक बात कह रखना आवश्यक है कि शतपथ ब्राझग (९-४-१-२ और ४) के अनुसार गंधर्व और अप्सराएँ मिथुन रूपमें प्रजापतिसे उम्पन्न हुई थीं। उर्वशीकी कहानीके प्रसंगमें शतपथ (११-५-१-४) अप्सराओं को हंसिनीके रूप में पानी में तैरते वर्णन किया गया है। प्राचीन विश्वासके अनुसार वरुण समुद्र के देवता हैं, और सारी सृष्टि इसी: देवाधिदेवसे उत्पन्न हुई है । समुद्र और जटके देवता होनेके कारण वक्षणका वाहन मकर है। उनकी स्त्री गौरीका वाहन भी मकर है। अमिपुराण (५१ अध्याय) में वरुणको मकरवाहन कहा गया है और विष्णुधर्मोत्तर (२-५२) में मकरकेतन । बरुणका मकरवाहन होना अनेक प्राचीन मूर्तियों और चित्रों में अंकित है। बादामी, मैसूर और भुवनेश्वरके लिंगराज मंदिरकी अनेक मूर्तियाँ इस बात का प्रमाण हैं। हरिवंश और भागवतके अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न कामदेवके अवतार हैं। विष्णुधर्मोत्तर (३-५८)के अनुसार कामदेव और उनकी स्त्री रति क्रमशः वरुण और उनकी पत्नी गौरीके अवतार हैं । यहाँ वरुणको मकरवाहन न कह कर सकरकेतन कहा गया है। जैन आगमोंसे स्पष्ट है कि कामदेव एक यक्षाधिप १५० के० कुमारस्वामी निम्नलिखित प्लेटोंको देखनेको कहते हैं: Banerji, R. D. Bas Relief of Badami Mem. A.S. I. 25, Plates XI,XXI.XXXIII a और e इत्यादि।