पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२५३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

२३० - हिन्दी साहित्यकी भूमिका प्रायः नग्न उत्कीर्ण है, केवल कटि-देशमें एक चौड़ी मेखला पहने हुए हैं। वृक्षोंमें अधिकतर न्यग्रोध, प्लक्ष, अश्वत्थ, उदुम्बर आदि वृक्ष ही उत्कीर्ण हैं। - इन वृक्षों में सर्वाधिक रहस्यमय वृक्ष अशोक है। जिस प्रकार वृक्षदेवता स्त्रियोंमें दोहद-संचार करते थे, उसी प्रकार सुन्दरी स्त्रियोंकी अधिष्ठात्री यक्षिपियाँ स्त्री-अंगके संस्पर्शसे वृक्षोंमें भी दोहद-संचार करती थीं। अशोकषष्ठी और अशोकाष्टमी व्रतमै अशोक वृक्षकी पूजा सन्तान-कामिनी होकर करनेका विधान है। चैत्र शुक्ला अष्टमीको अशोककी आठ कोमल पत्तियाँ भक्षण करनेसे दोहदसञ्चार होना धर्मग्रन्थोंसे स्पष्ट है (निर्णयसिंधु, तिथितत्त्व आदि )! अशोक वृक्षोंमें दोहद-संचार करती हुई स्त्रियों की मूर्तियाँ भारतीय शिल्यकलाकी अतिपरिचित बात है। मथुरा म्यूजियममें एक ऐसी उत्कीर्ण मूर्ति-सुरक्षित है जिसमें एक यक्षिणी अशोक वृक्षकी शाखा पकड़े खड़ी है और पादाघातसे अशोकको कुसुमित कर रही है । तंजोरके सुब्रह्मण्यम् मन्दिरके द्वारपर एक यक्षिणी-मूर्ति अशोकमें दोहद उत्पन्न करती हुई उत्कीर्ण है । इसका वाहन मकर है और हाथमै लीलाशुक है। मथुराकी एक मकरवाहना यक्षिणी-मूर्ति आजकल लखनऊ म्यूजियममें सुरक्षित है। यह भी अशोक वृक्षमें दोहद उत्पन्न करती हुई उत्कीर्ण है। एक इसी प्रकारकी मूर्ति बोस्टनकी ललित कला-प्रदर्शनी ( म्यूजियम आफ फाइन आर्टस ) में रखी हुई है। यह भी मथुरामें पाई गई थी और समयके हिसाबसे ईसासे लगभग दो सौ वर्ष पुरानी है । सम्भवतः पुन्नाग (तिलक १) वृक्ष दोहदोत्पादिनी एक मूर्ति कलकत्ता म्यूजियममें है जो भरहुतके एक रेलिंग पिलरपर उत्कीर्ण थी। इसका समय भी सन् ईसीके लगभग दो सौ वर्ष पूर्व है। ऐसी और भी अनेक मूर्तियाँ नाना प्रदर्शनियोंमें सुरक्षित हैं। भरहुत, साँची, मथुरा आदिमें प्राप्त यक्षिणी-मूर्तियोंका शरीरगठन और बनावट देख कर इस बातमें सन्देह नहीं रह जाता कि ये स्त्रियाँ पहाड़ी जातिकी हैं। असल में यक्ष और नागपूजक जातियाँ उत्तरकी रहनेवाली थीं। सारे उत्तर भारतमें प्राचीन शिल्पकार्य इन्हीं जातियोंकी कृतियाँ हैं। गत कालमें जब कि मारतीय सभ्यता आर्य और आर्येतर सभ्यताओं के मेलसे नये रूपमें समृद्ध हो उठी, काव्य और शिल्पमें यक्षों और नागोंका सम्पूर्ण ग्रहण हुआ। ४ गन्धर्व, अप्सराएँ और कवि-प्रसिद्धियाँ पूर्व वैदिक युगमें गन्धर्व और अप्सराएँ एकदम अपरिचित थीं। धीरे धीरे