पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२५०

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कवि-प्रसिद्धियाँ २२७ प्रकृति में जिन गुन्यों और क्रियाओंसे अकालमें ही पुध्योद्गम कराया जाता है, उसे दोहद कहते हैं। (मेघदूत २-१७ पर मल्लि-टीका), नैषधीय चरित, ( नै०३. २१) रघुवंश (र० ८-६२) और मेघदूतमें इसी अर्थमें इन शब्दोंका प्रयोचर हुआ है। संस्कृत काव्य और मूर्ति तथा चित्रशिल्बमें स्त्रियों के पदाघातसे अशोक वृक्षके पुचित होनेकी बहुत चर्चा है। इसके बाद बकुल वृक्षके दोहदका उल्लेख है। बकुल स्त्रियों की सुख-मदिरासे सिंचकर युणित हो जाता है। कालिदासके ग्रंथों में अशोक और बकुल इन दो वृक्षोंके दोहदका ही उल्लेख है। मलिनाथने मेघदूंत २.१७ की टीकामें अशोक और बकुलके अतिरिक्त अन्य कई बुझाके दोहदकी भी उल्लेख किया है। इस श्लोक स्त्रीके विभिन्न अंगों और क्रियाओंके संस्पर्शसे प्रियंगु, बकुल, अशोक, तिलक, कुरवक, मन्दार, चम्मक, आम, नमेरु और कर्णिकारके पुष्पित होनेकी बात है (तत् तत् प्रकरण देखिए)। इस वृक्षदोहदको मल्लिनाथ कवि-प्रसिद्धि' कहते हैं, पर काव्यमीमांसा या उसके अनुयाची अन्थों में वृक्षदोहद सम्बन्धो 'कवि-समय' की बिल्कुल चर्चा नहीं हैं। केवल साहित्य-दर्पण और अलङ्कार-शेखर अशोक और बकुलसम्बन्धी करिप्रसिद्धियों का उल्लेख करते हैं। काम्यमीमांसामें कवि-समयके प्रकरणम सदोइदका उल्लेख न होनेपर भी उसी ग्रन्थते अशोक, बकुल, तिलक और कुरवकसम्बन्धी प्रसिद्धियोंका समर्थन होता है। जान पड़ता है कि राजशेखर इस बातको देश-कालविरुद्ध नहीं मानते थे। मल्लिनाथने कुमारसंभव, (३,२६)की टीकामें अन्यत्र वृक्षदोहद-संबंधी कविप्रसिद्धियों के प्रसङ्गमें उपयुक्त चार वृक्षाका चर्चापरक एक संग्रहश्लोक उद्धृत किया है। ऐसा जान पड़ता है कि राजशेखरको १ काव्यमीमांसाके तेरहवें अध्यापने ये शे श्लोक उथुन हैं कुरबक कुचाचात-क्रीड़ारसेन वियुज्यसे। बकुलविटपिन् स्मर्तव्यं ते मुखासनसेचनम् ।। चरणघटनाशून्यो यास्यस्यशोक सशकतामिति निजमपुरत्यागे यस्य द्विषां जगदुःस्त्रियः ।। नुस्खमदिरया पादन्यासर्विलास-विलोकितबैंकुलविटपी रस्ताशोकस्तथा तिलकद्रुमः ।। जलनिधितटीकान्तराणां मात ककुभां जये । अगिति गमिता युवग्यामिविकासमहोत्सवम् ।।