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कवि-प्रसिद्धियाँ १ कवि-समय और काव्य-समय 'कवि-समय शब्दका अर्थ है कवियोंका प्राचारया सम्प्रदाय । इस शब्दकः । प्रयोग सबसे पहले राजशेखरने किया था। उनका मतलब यह था कि यद्यपि देश-काल आदिके विरुद्ध विषयों का वर्णन करना कबिल्लका दोष है, तथापि कुछ ऐसी बातें कविजन परम्परासे वर्णन करते आये हैं जिन्हें निदोष मान लेना उचित है । 'कवि-समय' शब्दसे मिलता-जुलता एक और शब्द अलंकार-शास्त्र में प्रयुक्त हुआ है, वह है 'काव्य-समय । इस शब्दका प्रथम, और शायद अन्तिम भी, प्रयोग वामनके 'अलंकार-सूत्र में पाया जाता है। (कान्यालंकार-सूत्र ५-१) किन्तु इन दोनों शब्दों के प्रयोग अलग अलग अर्थों में हुए हैं। वामनके मतसे लोक-शास्त्रके विरुद्ध अर्थों का प्रयोग ही काव्य-समय है। इसका अन्तर्भाव बादके किये हुए आलंकारिकोंके दोष-यकरण में हो जाता है । भामह और दण्डीने 'काव्य-समय' शब्दका प्रयोग नहीं किया है, परन्तु दोर' शब्दसे उनका भी अभिप्राय, देश, काल, कला, न्याय और आगमका विरोधी और प्रतिभा, हेतु और दृष्टान्तसे हीन होना है। (भामह ४-२) राजशेखर यह तो मानते हैं कि अशास्त्रीय और अलौकिक अाँका निबन्धन दोष है, पर उनका कहना यह है कि प्राचीन कालके कवे परम्परासे जिन बातोंका वर्णन करते आ रहे हैं, आज इस काल और इस देश में वे बाते नहीं मिलती तो भी उन्हें हम दोष नहीं कह सकते, जब कि शास्त्र अनन्त हैं, काल अनन्त है और देश भी अनन्त हैं। इसलिए लोक और शास्त्रविरोधी वे ही बातें कवि-समयके अन्तर्गत आती हैं जिन्हें प्राचीन कालके पंडित सहनशाल वेदोंका अवगाइन करके, शास्त्रोका अवरोध