पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२४७

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२२४ हिन्दी साहित्यकी भूमिका सम्प्रदायोंमें आहत होते हैं, समन्तभन्द्र और सिद्धसेन हैं। कुन्दकुन्द. अमृतवन्द्र, कार्तिकेय स्वामी, उमास्वाति, देवनन्दि, अकलंक, प्रभाचन्द, वादिराज, सोमदेव, आशाधर आदि दिगंबर आचार्योंने भारतीय चिन्ताधाराको बहुत अधिक समृद्ध किया है। इसी प्रकार श्वेताम्बर आचार्योंमें हरिभद्र, मल्लबादी, बादिदेवसूरि, मल्लिषेण, अभयदेव, हेमचन्द्र, यशोविजय आदिने जैनदर्शनपर महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखी है जो निश्चित रूपसे भारतीय पाण्डित्यका भूषण हैं। इन दार्शनिक ग्रन्थोंके सिवाय जैन सम्प्रदायके बाहर नाना क्षेत्रों में जैसे काव्य, नाटक, ज्योतिष, आयुर्वेद, न्याकरण, कोष, अलंकार, गणित और राजनीति आदि विषयोंपर भी जैन आचार्योंने लिखा है। बौद्धोंकी अपेक्षा वे इस क्षत्रमें अधिक असाम्प्रदायिक हैं। फिर गुजराती, हिन्दी, राजस्थानी, तेलगु, तामिल और विशेषरूपसे बड़ी साहित्यमें भी उनका दान अत्यधिक है। कनडी साहित्यपर तो इसका तेरहवीं शताब्दी तक जैनोंका एकाधिपत्य रहा है। कनड़ीके उपलब्ध साहित्यके लगभग दो तिहाई ग्रन्थ जैन विद्वानों के रचे हुए हैं। इस प्रकार भारतीय चिन्ताकी समृद्धिमें यह सम्प्रदाय बहुत महत्त्वपूर्ण है।