पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२४४

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जैन साहित्य २२१ पुराणके ६८३ पर्वमें और हेमचन्द्रके त्रिषष्टिशलाका-पुरुष चरितके ७३ पर्वमें मी यह कथा है। हेमचन्द्रकी कृतिको जैन-रामायण भी कहते हैं। रामायणकी. भाँति महाभारतकी कथा भी जैन ग्रंथोंमें बार बार आई है। सबसे पुराना संघदास गणिका वसुदेवहिण्डी नामक विशाल ग्रंथ प्राकृत भाषामें है आरे संस्कृतमें शायद पुन्नाट-संघके आचार्य जिनसनका ६६ सी हरिवंशपुराण है। सकलकीर्ति आदि और भी अनेक विद्वानांने हरिवंशपुराण लिन्चे हैं। इसी तरह १२००६ में मलधारि देवप्रमहरिने पाण्डवचरित नामक एक कान्य लिखा था जो महाभारतका संक्षिप्त रूप है । १६ वीं शताब्दीमें शुभचन्द्रने एक पाण्डवपुराण, जिसे जैन महाभारत भी कहते हैं, लिखा था। अपभ्रंश भाषामें तो महापुराण, हरिशरणा, पत्रपुराग, स्वयंभु पुग्यदंत आदि अनेक कवियोंने लिखे हैं। जैन पुराणों के नूल प्रतिपाद्य विषय ६३ महापुरुषोंके चरित्र हैं। इनमें २४ तीर्थकर, १२ चक्रवती, बलदेव, १ वासुदेव और प्रतिवासुदेव है। इन चरित्रोंके आधारपर लिखे गये ग्रंथोंको दिगंबर लोग साधारणत: “पुराण' कहते हैं और श्वेताम्बर लोग 'चरित। पुराणों में सबसे पुराना त्रिषष्टिलक्षणमहापुराण ( संक्षेपमें महापुराण ) है जिसके आदिपुराण और उत्तरपुराणः ऐसे दो भाग हैं। आदिपुराणके अंतिम पाँच अध्यावोंको छोड़कर बाकीक लेखक जिनसेन (पंचस्तूपान्वयी) हैं तथा अंतिम पाँच अध्याय और समूचा उत्तरपुराण उनके शिष्य गुणभद्रका लिखा हुआ है। पुराणोंकी कथाएँ बहुधा राजा श्रेणिक (विम्बिसार) के प्रश्न करनेवर गौतम गणधरद्वारा कहलाई गई है। महापुर/णका रचनाकाल शायद सन् ईसवीकी नवीं शताब्दी है। इन पुराणोंसे मिलते हुए श्वेताम्बर चरितोंमें सबसे प्रसिद्ध है हेमचन्द्रका त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, जिसे आचार्यने स्वयं महाकान्य कहा है । इस अंशकी बहुत-सी कहानियाँ यूरोपियनोंके मतसे विश्व-साहित्य में स्थान पाने योग्य है। वीरनन्दिका चन्द्रप्रभचरित, वादिराजका पाश्र्वनाथचरित, हरिचन्द्रका धर्माभ्युिदय, धनंजयका द्विसन्धान, वाग्भटका नेमिनिर्वाग, अभयदेवका जयन्तविजय, नुनिचन्द्रका शान्तिनाथचरित, आदि उच्च कोटिके महाकान्य है। ऐसे भी चरित हैं जो ६३ पुराणपुरुषोंके अतिरिक्त अन्य प्रद्युम्न, नागकुमार, वरांग यशोधर, जीवंधर, जम्बूस्वामी, जिनदत्त, श्रीपाल आदि महात्माओंके हैं और इनकी संख्या काफी अधिक है।