पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२४३

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- हिन्दी साहित्यकी भूमिका -स्वामी हुए जिन्होंने अद्वत वेदान्तकी प्रतिष्ठा की। इस शताब्दी में सर्वाधिक प्रतिभाशाली जैन आचार्य हरिभद्र हुए जो ब्राह्मणवंशमें उत्पन्न होकर समस्त ब्राह्मण शास्त्रोंके अध्ययनके बाद जैन हुए थे। इनके लिखे हुए ८८ ग्रन्थ प्रात हुए हैं जिनमें बहुतसे छप चुके हैं। बारहवीं शताब्दीमें प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्रका प्रादुर्भाव हुआ। इन्होंने दर्शन, ब्याकरण और कान्य तीनों में समान भावसे कलम चलाई । इन नाना विषयोंमें, नाना भाषाओंमें और नाना मतोंमें अगाध पांडित्य प्राप्त करने के कारण इन्हें शिष्यमण्डली कलिकालसर्वज्ञ' कहा करती थी। इस शताब्दीमें और इसके बाद भी जैनग्रन्थों और टीकाओंकी बाढ़-सी आ गई। इन दिनोंकी लिस्ती हुई सिद्धान्त-ग्रंथोंकी अनेक टीकाएँ बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। असल में यह युग ही टीकाओंका था: भारतीय मनीषा सर्वत्र टीकामें व्यस्त थी। विमलसूरिका पउमचरिय (पाचरित)नामक प्राकृत काव्य, जो शायद सन् ईसत्रीके आरम्भकालमें लिखा गया था, काफी मनोरंजक है। इसमें रामकी कथा है जो हिन्दुओंकी रामायणसे बहुत भिन्न है। ग्रन्थम वाल्मीकिको मिथ्यावादी कहा गया है । इसपरसे यह अनुमान करना असंगत नहीं कि कविने वाल्मीकिकी • रामायणको देखा था। दशरथकी तीन रानियों में कौशल्याके स्थानपर अपराजिता नाम है जो पद्म या रामकी माता थीं। दशरथके बड़े भाई थे अनन्तरथ। ये जैन साधु हो गये थे, इसीलिए दशरथको राज्य लेना पड़ा। जनकने अपनी कन्या -सीताको रामसे ब्याहनेका इसलिए विचार किया था कि राम (पन) ने म्लच्छोंके विरुद्ध जनककी सहायता की थी। परन्तु विद्याघर लोग झगड़ पड़े कि सीता पहलसे उनके राजकुमार चन्द्रगतिकी वाग्दत्ता थी। इसी झगड़ेको मिटाने के लिए "धनुषवाली स्वयंवर सभा हुई थी। अन्तमें दशरथ जैन भिक्षु हो गये। भरतकी भी यही इच्छा थी, पर राम और कैकेयीके आप्रहसे वे तबतकके लिए राज्य सँभालनेको प्रस्तुत हो गये जबतक पक्ष (राम)न लौट आवें । आगकी कथा "प्रायः सब वही है। अन्तम रामको निर्वाण प्राप्त होता है । यहाँ राम संपूर्ण जैन वातावरण में पले हैं। सन् ६७५ में रविषेणने संस्कृतम जो पनचरित लिखा वह विमलके प्राकृत 'जउमचरियका प्रायः संस्कृत रूपान्तर या अनुवाद है। गुणभद्र भदन्तके उत्तर