पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२४१

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका श्वेताम्बर सम्प्रदायमें चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपपण्णतिको उपांग माना है, और दिगम्बरोंने दृष्टिवादके पहले भेद परिकर्ममें इनकी गणना की है। इसी तरह श्वेताम्बरोंके अनुसार जो सामायिक, संस्तव, बन्दना और प्रतिक्रमण दसरे मूलसूत्र आवश्यकके अंश विशेष हैं उन्हें दिगम्बरोंने अंग-बाह्य चौदह भेदों में गिनाया है। दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार और निशीथ नामक ग्रन्थ भी अंगबाह्य बतलाये गये हैं । अंगोंके अतिरिक्त जो भी साहित्य हैं, वह सब अंगवाह्य है। अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य भेद श्वेताम्बर सम्प्रदायमें भी माने गये हैं और उपांग एक तरहसे अंगबाह्य ही हैं । दिगम्बर संप्रदायमें उपांग भेदका उल्लेख नहीं है। परन्तु उक्त अंग और अंगबाह्य ग्रन्थोंके दिगम्बर सम्प्रदायमें सिर्फ नाम ही नाम है; इन नामोंका की अन्य उपलब्ध नहीं है। उनका कहना है कि वे सब नष्ट हो चुके हैं। दिगम्बरोंने एक दूसरे देंगसे भी समस्त जैनसाहित्यका वर्गीकरण करके उसे चार भागोंमें विभक्त किया है; (१) प्रथमानुयोग, जिसमें पुराण पुरुषों के चरित और कथाग्रन्थ हैं, जैसे पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, त्रिषष्टिलक्षणमहापुराण (आदिपुराण और उत्तरपुराण)।(२१ करणानुयोग, जिसमें भूगोल-खगोलका, चारों गतियोंका और काल-विभागका वर्णन है, जैसे त्रिलोकप्रज्ञप्ति, त्रिलोकसार जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, सूर्य-चन्द्र-प्रज्ञप्ति आदि । (३) द्रव्यानुयोग जिसमें जीव अजीव आदि तत्त्वोंका, पुण्य-पाप बन्ध-मोक्षका वर्णन हो, जैसे कुन्दकुन्दाचार्यके समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, उमास्वातिका तत्त्वार्थाधिगम आदि। (४) चरणानुयोगा, जिसमें मुनियों और श्रावकोंके आचारका वर्णन हो जैसे बट्टकेरका मूलाचार, आशाधरके सागार-अनगारधर्मामृत, समन्तभद्रका रत्नकरण्ड श्रावकाचार आदि । इन चार अनुयोगोंको वेद भी कहा गया है। दिगम्बर-सम्प्रदायके अनुसार बारह अंगोंके नाम वही हैं, जो ऊपर लिखे गये है। बारहवें अंग दृष्टिवादके पाँच भेद किये हैं-१ परिकर्म, २ सूत्र, ३ प्रथमानुयोग, ४ पूर्वगत और ५ चूलिका । फिर पूर्वगतके चौदह भेद बतलाये हैं-~-१ उत्पादपूर्व, २ अग्रायणी,.३ वीर्यानुप्रवाद, ४ अस्तिनास्तिप्रवाद, ५ ज्ञानप्रवाद, ६ सत्यमवाद, ७ आत्मप्रवाद, ८ कर्मप्रवाद, ९ प्रत्याख्यान, १० विद्यानुप्रवाद, ११ कल्याण, १२ प्राणावाय, १३ क्रियाविशाल और १४ लोक