पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२३२

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कीर्ति भारतवर्षकी सीमा लाँवकर सुदूर-पूर्वमें फैल गई थी, भारतवर्षकी विशेष गौरवकी वस्तु है। नागार्जुन, आर्यदेव, वसुबन्धु, असंग, शान्तिदेव आदि पंडितों की लोकोन्चर प्रतिभाका गर्व आज भी यह देश औचित्यके साथ कर सकता है। कुमारजीवके किये हुए चीनी अनुवाद आज चीनमें क्लासिक माने जाले हैं। इन्होंने सैकड़ों बौद्ध ग्रन्थोंका चीनी भाषा अनुवाद किया था । भारतवर्षसे जाकर वहाँकी भाषापर अधिकार करके अनुवाद करना आसान काम नहीं है। इनके सिवा अन्य अनेकों आचार्योंने भी चीन और तिब्बतकी भाषामें अनुवाद किये हैं। आज भारतवर्षकी खोई हुई सम्पत्तिको सुरक्षित रखनेका सम्पूर्ण श्रेय इन परिव्राजक आचार्योको और साथ ही चीन और तिब्बतके गुणज्ञ जन-समृदयको है। नागार्जुन माध्यमिक सम्प्रदायके आचार्य थे। उन्होंने अपनी माध्यमिक कारि- कापर स्वयमेव अकुतोभया नामक टीका लिखी थी। भारतीय दार्शनिक और वैज्ञानिक साहित्यमें यह प्रथा खूब लेकप्रिय हुई थी। कहते हैं, नागार्जुन ही इस प्रथा (कारिका और टीका दोनों लिखने की प्रथा) के आदि-प्रस्तक है। नागार्जुनके दो और अन्य है, युक्तिपष्टिका और श्रीलेख । इसिंगने दसरेको भारतवर्ष में खूब प्रचलित देखा था। आर्यदेव नागार्जुनके शिष्य थे। इन्हींको कापदेव भी कहते हैं । शायद इनकी एक आँख कानी थी। इनके नामपर अनेक ग्रन्थ चलते हैं। सबसे प्रसिद्ध है चतुःशतक, जिसे तिब्बती अनुवादके आधारपर विश्व-भारतीक भूतपूर्व आचार्य पं० विधुशेखर भट्टाचार्यने फिरसे संस्कृतमें उल्था करके सम्पादन किया है। यह माध्यमिक सम्प्रदायका प्रामाणिक अन्य है। इनके नामपर एक और चित्तविशुदि-प्रकरण नामक ग्रन्थ भी चलता है जिसके कुछ छिन्न अंश प्राप्त हुए हैं । पंडित लोग इसको इनकी रचना माननेमें हिचकिचाते हैं । चीनी अनुवादों में दो और ग्रन्थ भी इनके अनुवादित हैं। अब तक समझा जाता था कि असंग या आयसिंग ही महायान योगाचार सम्प्रदायके आदि आचार्य थे। परन्तु असलमें इस सम्प्रदायके आदि आचार्य इनके गुरु मैत्रेय या मैत्रेयनाथ थे। यह सम्प्रदाय विज्ञानवादका ही प्रचारक है। अभिसम्यालंकारकारिका या प्रज्ञापारमितोपदेशशास्त्र मैत्रेयनाथकी रचना है। चौथी शताब्दी में पंचविंशसाहस-प्रज्ञापारमिताके साथ चीनी भाषामें इसका अनुवाद हो गया था। महायानसूत्रालंकार भी इन्हींका लिखा हुआ अन्य है। अर्सगदेवकी प्रसिद्ध पुस्तक योगाचारभूमिशास्त्र या सप्तदशभूमिशास्त्रका केवल