पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२३१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

૨૦૮ हिन्दी साहित्यकी भूमिका - चीनमें छठी शताब्दीमें एक अवतसक सम्प्रदायका उद्भव हुआ। इसका और जापानके केगन-सम्प्रदायका सर्वमान्य सूत्र बुद्धावतंसक है जिसकी चर्चा महान्युत्पत्ति नामक बौद्ध कोषमें आती है। चीनी परम्पराके अनुसार ६ अवतसक सूत्र थे जिनमें सबसे बड़ा १ लाख गाथाओंका था, और जो सबसे छोटा था उसमें ३६००० गाथाएँ थीं। सा ४१९ ई. में छोटे अवतंसक सूनका अनुवाद चीनी भाषामें हुआ था। इस कारका कोई अवतंसक सूत्र आजकल संस्कृतमें उपलब्ध नहीं है। लेकिन एक गंण्डन्यूह महायानसूत्र हे जो चीनी अनुवादसे मिलता है। दशभूमिक या दशभूमीवी इन्हीं अवतंसकोंका एक अंश माना जाता है। इनमें उन दवा भूमियों या पोझी चर्चा है जिनसे बुद्धत्व प्राप्त किया जा सकता है । तिब्बती और चीनी अनुवादोंसे इन अवतंसकोंकी तरह एक रत्नकटका भी पता चलता है। यह सन् ईसबीकी दूसरी शताब्दीमें चीनी भाषामें अनूदित हुआ था। उक्त अनुवादोंमें कई परिपृच्छा-ग्रन्थोंकी भी चर्चा है जिनमें एक मुख्य राष्ट्रपाल-परिपृच्छा या राष्ट्रपालसूत्र है। इसका अनुवाद चीनमें छठी शताब्दी में हुआ था। जिस प्रकार प्रज्ञापारमिताएँ शून्यवादका प्रचार करती हैं, उसी प्रकार सद्धर्मलंकावतार-सूब विज्ञानवादका । विज्ञानवाद शून्यवादका ही कुछ नरम रूप है जो यद्यपि जगतको बाह्यतः असत् मानता है, पर आन्तरिक अनुभूतिके निकट उसकी सत्ताको स्वीकार भी करता है। पंडितोंका कहना है कि उक्त ग्रन्थ एक ही बार नहीं लिखा गया होगा। इसमें निरंतर प्रक्षेप होते रहे हैं। तीन बार यह चीनी भाषामें अनूदित हुआ। सबसे पहला अनुवाद गुणभद्रकने ४४३ ई० में किया था। उत्तरकालीन महायानसूत्रोंमें समाधिराज या चन्द्रप्रदीप सूत्र और सुवर्णप्रभास उल्लेख-योग्य है । अन्तिम पुस्तक महायानी देशोंमें बहुत प्रचलितहै। इसका एक छिन्न अंश मध्य-एशियामें भी पाया गया है। इसके भी कई चीनी अनुवाद हुए। प्राप्त प्राचीन अनुवाद पाँचवीं शताब्दीका है। कुछ महायानी आचार्य अश्वघोष, मातृचेट और आर्यशूरका उल्लेख पहले ही किया जा चुका है। और भी कई ऐसे आचार्य हुए हैं जिन्होंने अपनी दार्शनिक चिन्ताओं ग्रन्थों,टीकाओं और काम्योंसे संस्कृत-साहित्यको बहुत समृद्ध किया। इनमें कई एक जिनकी