पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२२८

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बौद्ध-संस्कृत साहित्य बहुत-सी कहानियाँ हैं जो मूलतः अवदानशतककी कहानियोंकी अपेक्षा अधिक प्राचीन हैं। ऐसा अनुमान किया गया है कि इसकी घटनाएँ सम्भवतः मूल सर्वास्तिवादियों ( हीनयानी ) के विनय-पिटकसे ली गई होगी। कहानियाँ अधिकतर संस्कृत-गद्यमें लिखी गई हैं, जिनमें बीच-बीच में प्राचीन गाथाएँ भी हैं। कभी कभी कान्य-पद्धतिकी अलंकृत कविताएँ भी मिल जाती है, जो इस वातका सबूत हैं कि पुस्तक-रचनाके समय काव्य-पद्धति काफी अग्रसर हो चुकी होगी। अनुमान है कि इसका वर्तमान रूप अन्तिम बार सन् ईसवीकी चौथी शताब्दी में निश्चित हो गया होगा। इन युस्तकोसे और इनमें भी विशेष रूपसे अवदानशतकसे कान्यात्मक पद्योंका संग्रह करके कई पुस्तकें लिखी गई हैं जिनमें कल्पद्रुमावदानमाला, रत्नावदानमाला, अशोनावदानमाला और द्वात्रिंशवदान मुख्य हैं। एक और पुस्तक, जिसे भत्रकलावदान कहते हैं, उपगुप्त और अशोक की ३४ कहानियोंकी है । अवदानशतककी कहानियोंको अधिकांशमें उपजीन्य मानकर लिखी हुई दूसरी पुस्तक चित्रावदान है। अन्तिम महत्त्वपूर्ण प्रसिद्ध काश्मीरी कवि क्षेमेन्द्रकी अवदान-कल्पलता है जो ग्यारहवीं शताब्दीमें लिखी गई थी । तिब्बतमें इस पुस्तकका बहुत मान है। ऊपरके संक्षिप्त विवरणसे स्पष्ट है कि अवदान एक समय में बहुत ही लोकप्रिय विषय था। इस विषयके निश्चय ही सैकड़ों ग्रन्थ लिखे गये होंगे जो कालचके पहियेक नीचे पिस गये हैं। कहबोंका पता चीनी और तिब्बती अनुवादकोंकी कृपासे ही लगा है। अवदानों में कई ऐसे हैं जिनकी मात्रा अलंकृत और मैंजी हुई है और जो कविखके सुन्दर नमूने हैं। रचना महायानसूत्र अब तक जिस साहिल्लान चर्चा हुई है उसका एक पैर हीनयान में है और दूसरा महायानमें । अब जिन ग्रन्थोकी चर्चा की जायगी, वे सम्पूर्णतः महायानसम्प्रदायके हैं। महायानसूत्रोंमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ सद्धर्म-पुण्डरीक है। जो कोई भी महायान-सम्प्रदायके साथ परिचित होना चाहे, उसके लिए इससे अधिक अच्छी सहायक पुस्तक दूसरी नहीं है । इस ग्रंथके शाक्यमुनि (बुद्ध) में मनुष्यके कुछ भी चरित्र अवशिष्ट नहीं रह गये हैं। वे देवताओं के भी देवता, स्वयंभू और भूतमात्रके परित्राता हैं। उनकी तुलना बहुत कुछ वैष्णव अवतारों के