पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२२७

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२०४ हिन्दी साहित्यकी भूमिका विस्तार । यह नाम ही महायान-विश्वासका निदर्शक है। अन्यान्य महायानसूत्रों की भौति यह भी अपने आपको महावैपुल्य सूत्र कहता है। इस ग्रंथमें जिस पौराणिक ढंगसे बुद्धका वर्णन किया गया है, वह हिन्दू पुराणोंकी याद दिला देता है और भक्तितत्वकी व्याख्या तो भागवतकी याद दिलाती है। बुद्धदेव आनन्दको उसी प्रकार शरणागतके उद्धारका विश्वास दिलाते हैं जैसे गीतामें श्रीकृष्ण अर्जुनको । ललितविस्तरकी गाथाएँ बहुत पुरानी मानी जाती हैं। सन् ईसवीकी प्रथम शताब्दीमें ही इसका एक अनुवाद चीनी भाषामें हो गया था; किन्तु वर्तमान पुस्तकमें उसके बाद भी प्रक्षेप हुए हैं । महावस्तु और ललितविस्तरने चौथी शताब्दी तक निश्चित रूपसे यह रूप धारण कर लिया होगा। ललितविस्तर यद्यपि बुद्धदेवके जीवनका वास्वविक महाकाव्य नहीं है, पर उसमें वे सभी बातें मूल रूपसे विद्यमान जो ऐसे काव्यका उपादान हैं। पंडितोंका अनुमान है कि अश्वघोषने अपने प्रसिद्ध काव्य बुद्धचरितका मसाला इसी ग्रन्थके प्राचीनतर रूपसे संग्रह किया होगा। अवदान-साहित्य . ... सम्बन्ध पालि-भाषाके अपदान शब्दसे होना चाहिए । इसका अर्थ होता है कोई उल्लखयोग्य कार्य। कभी कभी इसका व्यवहार खराब अर्थमें भी हुआ है । अवदानों में जातक-कथाओंकी भाँति बुद्धदेवके पूर्ववर्ती जन्मोंकी उल्लेख-योग्य घटनाओंका निबन्धन होता है। कहा जाता है कि अवदानोंका भी प्राचीनतम रूप हीनयान-सम्प्रदायसे सम्बद्ध था; पर वर्तमान रूपका सम्बन्ध केवल महायान संप्रदायसे ही है। आर्यशूर और आर्यचन्द्रकी जिन दो पुस्तकों (जातकमाला और कल्पनामंडितिका) की पहले चर्चा की जा चुकी है, वे असलम अवदानकी जातिकी ही हैं। अवदानशतकमें सौ अवदान संग्रहीत हैं। इस ग्रन्थका अनुवाद सन् ईसवीके दो सौ वर्ष बाद चीनी भाषामें हो गया था। इसमें महाथानीय पौराणिकताका भी बहुत कम प्रभाव विद्यमान है। इस श्रेणीकी एक और पुस्तक कर्मशतक है जो अधिकांश अवदानशतककी ही भाँति है। दुर्भाग्यवश इसका पता केवल एक तिब्बती अनुवादसे ही चलता है। इस जातिके ग्रन्थों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ दिव्यावदान है जो यद्यपि अवदानशतकके बादका संग्रहीत है, पर इसमें ऐसी