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बौद्ध-संस्कृत-साहित्य छिन्न अंशका भी उद्धार किया गया है। उनका सूत्रालंकार कहानियोंका ग्रंथ है जो जातकके ढंगपर लिखी गई हैं। अश्वघोषवा एक ग्रन्थ वज्रसूची आधुनिक पाठकोंके लिए काफी मनोरंजक हो सकता है। इसमें जाति-वर्ण-व्यवस्थाको अस्वाभाविक सिद्ध किया गया है। अश्वघोधने महायानकी तत्त्ववादके भी पुस्तके लिखी हैं। इनके सम्प्रदायके दो और भी प्रसिद्ध कवि हो गये हैं,-मातृचेट और आर्यशूर । अगर तिब्बती अनुवादोंपर विश्वास किया जाय, तो मातृचेट अश्वघोषका ही दूसरा नाम है। शूर या आयशूरकी जातकमाला उनके पूर्ववत वैभाषिक कवि आर्यचन्द्रकी कल्पनामंडितिकाके ढंगपर लिखी गई है । आर्यचंद्रकी पुस्तकका अपूर्ण अंश ही संस्कृतमें प्राप्त हुआ है। पर बह पुस्तक कई बार चीन तिब्बत, मंगोलिया आदिकी भाषाओंमें अनूदित हो चुकी है। महावस्तु और ललितविस्तर हानयानकी एक अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रंथ महावस्तुअवदान (या संक्षेपमै महावस्तु) है। जैसा कि पहले ही कहा गया है, यह पुस्तक महासांधिक समदायकी लोकोत्तरवादी शाखाका विनय पिटक है। लोकोत्तरवादियों के मतो रात विठोत्तर चरित्रके पुरुष हैं। वे केवल लीलाके लिए शरीर ग्रहण करते हैं, पर इस नहीं। महावस्तुमें वस्तुतः बुद्धदेवका जीवन-चरित हो अथित है जिसमें पालीके लिखे हुए बुद्ध-चरितोंसे विशेष अन्तर नहीं है। यह ग्रंथ बुद्धदेवके लोकोत्तर चरित्र और करामाती कार्योसे भरा है। निदान कथाकी भाँति इसके भी तीन विभाग है । अन्तिम हिस्सेकी मुख्य बातें प्रायः महानगसे मिलती है । यद्यपि यह पुस्तक बुद्धदेवकी जीवनी है, पर यह जीवनी सिलसिलेवार नहीं लिखी गई है। बीच बीच में जातककी कहानियाँ और धर्म व्याख्याकारी सूत्र आदि प्रायः आते रहते हैं। सिलसिला प्रायः टूट जाता है। सारी पुस्तक मिश्र संस्कृत में लिखी गई है। इस ग्रंथमे ऐसी जातक और अवदान-कथाए भी पाई जाती हैं जिनका पाली में कोई पता नहीं चलता। इस दृष्टि से भी इस ग्रंथका महत्त्व है। दद्मपि यह हीनयान-सम्प्रदायका ग्रंथ है, परन्तु इसमें महाबान-प्रभाव स्पष्ट है। ललितविस्तर महायान-सम्प्रदायका ग्रंथ है । पण्डितोंका कहना है कि इसमें सभी महायानीय लक्षण विद्यमान हैं. यद्यपि यह ग्रंथ मूलरूपसे हीनयान-सम्पदायके सर्वास्तिवादियों के लिए लिखा गया था। ललितविस्तरका अर्थ है लीलाका