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२०२ हिन्दी साहित्यकी भूमिका सन् ईसवीकी पहली शताब्दीसे ही बौद्धधर्मका प्रवेशारम्भ हुआ। वहाँ सन् ५१८ से १०१० ई. तक बौद्धधर्म बारह बार गया। प्रत्येक बार कुछ न कुछ नये अनुवाद हुए, इसीलिए चीनमें कभी कभी एक ही ग्रन्थके कई कई अनुवाद पाये जाते हैं। परन्तु जिसे चीनी त्रिपिटक कहा जाता है वह नाममात्रका ही त्रिपिटक है। कोई ऐसा सिद्धान्त और मतवाद नहीं, जो इसमें स्थान न पा सका हो। इसके बाद कोरिया में चीनसे मूल और अनुवाद ग्रन्थ सन् २०१० में ले जाये गये थे, जो सबके सब जापानमें अब भी सुरक्षित हैं। इन समस्त उद्गमोंसे बौद्धोंके संस्कृत-साहित्यकी विशालताकी एक झलक हम पा सकते हैं। हालही में यूरोपियन और भारतीय पंडितोंने अनेक यत्नोंके साथ इन ग्रन्थोंमेंसे कईको फिरसे संस्कृतमें उल्था किया है । यह काम अभी शुरू ही हुआ है चीनी पर्यटक हुएनत्सांगके जीवनसे जान पड़ता है कि वे महायानसूत्रके २२४ ग्रन्थ, अभिधमके १९२ ग्रन्थ; स्थविर-सम्प्रदायके सूत्र, विनय और अभिधर्म जातीय १४ ग्रन्थ, महासांघिक सम्प्रदायके इसी श्रेणीके १५ ग्रन्थ महीशास्त्रक सम्प्रदायके तीनों श्रेणीके २२ ग्रन्थ; काश्यपीय सम्प्रदायके ऐसे ही १७ ग्रन्थः धर्मगुत-सम्प्रदायके ४२ ग्रन्थ साथ ले गये थे। इसपरसे यह अनुमान करना अयोक्तिक नहीं कि सभी बौद्ध-सम्प्रदायोंके अपने अपने त्रिपिटक ये और सबके पास अपने अपने विशाल साहित्य वर्तमान थे। चीनी तालिकामें मूल सर्वास्तिवाद, महासांधिक, महीशास्त्रक, सर्वास्तिवाद, धर्मगुप्त और काश्यपीय सम्प्रदायके विनय-ग्रन्थोंका उल्लेख मिलता है। अभिधर्म पिटकके प्रसंगमें सर्वास्तिवाद सम्प्रदायके ६ पादशास्त्र या प्रकरणग्रन्थों और सम्मितीय सम्प्रदायके केवल एक ग्रंथका उल्लेख है। कुछ पंडित हएनत्सांगके विवरणको प्रामाणिक नहीं मानते और कहना चाहते हैं कि केवल सर्वास्तिवादी और वैभाषिक सम्प्रदायोंके पास ही पालि-त्रिपिटकके अनुरूप त्रिपिटक थे। लेकिन केवल त्रिपिटक ग्रन्थ ही संस्कृतमें लिखे गये हों, ऐसी बात नहीं है। बौद्ध नाटक ओर काव्य तथा स्तोत्र आदि अन्थ भी काफी लिखे गये थे। इनमें से कइयोंका साहित्यिक मूल्य बहुत अधिक कूता गया है। प्रसिद्ध कवि, नाटककार और दार्शनिक अश्वघोषको कालिदासका भी मार्गदर्शक बताया गया है। उनके 'बुद्धचरित' और 'सौन्दरानन्द' निश्चय ही संस्कृत-कान्यके भूषण हैं। इन दो अन्योंके सिवा मध्य एशियासे उनके द्वारा रचित एक नाटकके