पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२२४

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बौद्ध-संस्कृत-साहित्य साहित्य था। आज तक इनके मतके सम्पूर्ण ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हो सके हैं, फिर भी कुछ यूरोपियन पंडितोंने पूर्वी दुर्किस्तानसे इनके ग्रन्थोंके छोटे-बड़े बहुत-से छिन्न अंशोका उद्धार किया है। फिर महावस्तु, दिव्यावदान और .. ललितविस्तर (परिचय आगे देखिए) में भी इनका उल्लेख पाया जाता है। मूल सर्वास्तिवादियोंके प्रसिद्ध ग्रन्थोंका चीनी यात्री इत्सिंगने चीनी भाषामें अनुवाद किया या । संस्कृत और पाली ग्रन्थों में समानता बहुत है; पर अन्तर भी कम नहीं है। इसका कारण यह अनुमान किया गया है कि शायद दोनों ही उस मूल मागधी-रूपसे लिये गये हों, जो अब खो गये हैं और बादमें उनमें स्वतन्त्र भावसे प्रक्षिप्त अंश जोड़े जाते रहे हो। भारतवर्षमें बौधर्म केवल नाम-शेष ही रह गया है। इसका भग्नावशेष केवल उत्तरी प्रान्त नेपालमें बचा हुआ है । वहाँके गुर्खे तो हिन्दू हैं; पर नेवारी लोग बौद्ध हैं। उनमें केवल इन नौ ग्रन्थोंका प्रचार है: प्रशापारमिता, गंडन्यूह, दशभूमीश्वर, समाधिराज, लंकावतार, सद्धर्म-पुंडरीक, तथागत-गुह्यक, ललितविस्तर और सुवर्णप्रभा । इनके अतिरिक्त वहाँ और भी कई ग्रन्थ खोजसे मिले हैं, जिनमें महावस्तु और दिव्यावदान बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। बहुत दिनों तक विद्वानोंकी धारणा रही कि ये अन्य वस्तुतः पालीके ग्रन्थोंके ही संस्कृत रूपान्तर हैं, जो स्थान-स्थानपर बल दिये गये है। यही कहा जाता रहा कि इस संस्कृत-शास्त्राने विनय-अन्य नहीं है। पर अब ये बातें गलत साबित हो गई हैं। महावस्तु, असलमें, लोकोत्तरवादियोंका विनय ही है जो महासधिकोंमें भी गृहीत हो गया है। हालही में यह भी समझा जाने लगा है कि दिव्यावदान भी मूल सर्वास्तिवादियोंके विनयके आधारपर ही रचित है। नेपाली ग्रन्योंमें और भी ऐसी बातें मिली हैं, जिनके विषयमें लोगोंकी धारणा थी कि वे पालीकी ही विशेषता है। फिर तिब्बतमें बहुत-से संस्कृत-ग्रन्थों के अनुवाद पाये गये हैं। इस देशमें चौद्धधर्म सातवीं शताब्दीमें पहुंचा था। वहाँ ये ग्रन्थ दो भागों में विभक्त किय गये हैं, कैंजुर और तेंजुर । पहलेमें मूल ग्रन्थोंके अनुवाद हैं और दूसरे व्याख्यापरक अन्ध और व्यवहारसम्बन्धी पुस्तिकाएँ हैं। केंजुरके साल विभाग हैं दुल (विनय), शेस्-यिन् (प्रज्ञापारमिता), फल-चेन् (अवतैसक), दुकोन-व्.गस् ( रत्नकूट), भ्यङ-दम् (निर्वाण), दोस्दे (सूत्र) और र-म्यु-मह (न)। ये सभी संस्कृत ग्रन्थोंके अनुवाद हैं। फिर चीनमें