पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२२३

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पिटकके अन्तिम दो ग्रन्यासन देवके शिष्य महाकच्चायन हैं जो पेटका लेकिन ऐसा विश्वास किया जाता है कि लंकामें ही रचित हुआ था । लेकाले शियों के निकट हम कृत विश्वसनीय संकलनोंको सुरी भिक्षुओंके उन समस्त प्रयत्नोंके. ५ और समृद्ध बनानेके लिए किया अधिक महत्त्वपूर्ण है बुद्धघोषाद्ध-संस्कृत-साहित्य अनुसार अर्थकथाएँ (पाहत्यका परिचय दिया गया है, वह पाली में लिखा आ रही हैं, जिन्हें महिन्ट साहित्य हीनयानके स्थविरवादियोंका है। बौद्धधर्मके अन्यान्य ! इसी अनुव तवर्षसे उठ गये हैं। अशोक-संगीतिके अवसरपर १८ बौद्ध-सम्प्रदायोंकी चर्चा मिलती है। इन सबके अपने अपने पिटक थे, जो सम्भवतः ब्राह्मणों की वैदिक शाखाओंकी भाँति कुछ न्यूनाधिक पाठ-भेद रखते थे। परन्तु वैदिक शाखाओंसे इनकी एक विशेषता थी। इनमें केवल पाठका ही नहीं, भाषाका भी भेद था। स्थविरवादियोंका साहित्य पाली-भाषामें है; पर ऐसा नहीं कहा जा सकता कि यही भाषा बुद्धकी उच्चरित भाषा हो । ऐसे कुछ संस्कृत और मिश्रसंस्कृतके ग्रन्थ पाये गये हैं जो या तो बौद्ध-सम्प्रदायोंके हैं या उनके द्वारा प्रभावित हैं। हीनयान और महायान ग्रन्थोंका मोटे तौरपर भेद समझना हो, तो हिन्दुओके ज्ञानपंथ और भक्तिपथके उदाहरणसे समझा जा सकता है। हीनयानके साधक अनेक यत्नके बाद निर्वाण-प्राप्तिको सम्भव बताते हैं, जो निश्चय ही बहुत कम लोगोंको सुलभ है; पर महायानवाले साधक जप, मंत्र, पूजा-पाठ आदिके द्वारा निर्वाणको बहत सहजसाध्य और सर्वलोकसुलभ बताते हैं । यद्यपि संस्कृत या अर्ध-संस्कृतका साहित्य महायान-सम्प्रदायका ही अधिक है; पर ऐसा नहीं कह सकते कि इस भाषामें हीनयानका सम्प्रदाय एकदम है ही नहीं। लोकोत्तरवादी बौद्ध, जो अधिकांश महायानसे प्रभावित थे, वस्तुतः हीनयानी ही ये। फिर सर्वास्तिवादी भी जो काश्मीर, गांधार आदि सरहदी सूबों में फैले हुए थे हीनयानी ही थे। यही लोग तिब्बत, चीन और मध्य एशियामें भी अपना प्रभाव-विस्तार कर.सके थे। इनका अपना संस्कृत