पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२२०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बौद्ध-साहित्य खुद्दपाठ, (२) धम्मपद, (३) इदान, (४) इतिवृत्तक, (५) सुत्तानिपात, (६)विमानवरथु, (७) पेतवत्थु, (८) येरमाथा, (९) शेरीगाथा, (१०) जातक, (११) निद्देश, (१२) पटिसंभिदा, (१३) अभिधान, (१४) बुद्ध- बस, (१५)चरियापिटक । अन्तिम तीन अन्य मज्झिममायाकोने दीवमाणकोंसे अधिक स्वीकार किये हैं। यह एक विशाल साहित्य है, और इसकी रचना सकड़ों वर्षों तक होती रही है। हम स्थानाभावके कारण उसका विशेष वर्णन देने में असमर्थ हैं। अभिधम्म-पिटक जैसा कि पहले ही बताया गया है. अभिधम्म-पिटक बुद्धदेवके बहुत बाद संग्रह, किये गये थे। मुन्त-पिटककी प्रतिपाद्य वस्तुसे कोई नवीनता इसमें नहीं है। दोनोंमें अन्तर इतना ही है कि सुत्त-पिटक सरल, सरस और सहज बौद्ध सिद्धान्तोंका संग्रह है और अभिधम्ममें पण्डिताऊपन, रूचता और वर्गीकरण की अधिकता है। फिर भी चौद्ध दर्शन, बौद्ध परिभाषा आदिके समझने में यह पिटक बहुत ही उपयोगी है। महाबोधिबंशकी तालिकाके अनुसार निम्नलिखित ग्रन्थ अभि- धम्म-पिटकके अन्तर्गत हैं-धम्मसमणि, विभंग, कथावत्थु, पुनगलपत्रत्ति, पातु- कथा, यमक, पट्टान या महापट्ठान। अनुपालि या अतुपिटक ग्रन्थ अनुपालि वा अनुपिटक ग्रन्थ त्रिपिटकके आधारपर ही रचित है। इनमें अधि- कांश लंकाके भिक्षुओंके लिखे हैं। कुछ अपवाद भी हैं। जो अनुपालि अन्य लंकाम नहीं लिखे गये, उनमें सबसे प्रसिद्ध है मिलिन्दपण्याहो या मिलिन्द प्रश्न। ग्रीक राजा मीनाण्डर और बौद्ध सन्यासी नागसेनके बीच जो सत्त्वचची हुई थी, उसीका बह लिपिबद्ध रूप है। यह ग्रन्थ मीनाण्डरके राज्यकालके ही आसपास रचित हुआ होगा। इसकी प्रतिष्ठा हीनयान और महायान दोनों सम्प्रदायोंमें है, और बौद्ध लोगों में यह त्रिपिटकके समान ही समाप्त होता है। विद्वानों ने इसके चार्तालापको दीवनिकाय आदि ग्रन्थोंसे अधिक परिमार्जित बताया है। संसारके वार्तालाप-साहित्यमें इस अन्यका बहुत ही श्रेष्ठ स्थान है। दूसरा ग्रन्ध जो भारत- वर्षमै लिखा गया था वह है नेविपकरण जिसे नेत्तिगंध या नेत्ति भी कहते हैं। इसमें बुद्धदेवकी शिक्षाओंका क्रमबद्ध विवरण दिया हुआ है। कहते हैं कि अभिधम्म