पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२१८

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बौद्ध-साहित्य ..... उसे इधर उधरसे बटोरकर सी हुई कन्था धारण करनी चाहिए, पर यह कन्था रेशमी या ऊनी वस्त्रोंकी भी हो सकती है। उसे मनता, वाचा और कर्मणा अहिंसक होना चाहिए; पर वह मछली भी खा सकता है, बशर्ते कि उसके लिए न मारी गई हो। इसी लिए विंटरनिजका विचार है कि इस प्रकार दो कोटियों- पर गये हुए नियमोंके बनने में निश्चय ही सैकड़ों वर्ष लगे होंगे। और इसी लिए एक प्रकारके पंडित हैं जो इन पुस्तकोंमें आये हुए बुद्धदेवके संवादोंको बहुत महत्व नहीं देते; पर दूसरे ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि ये नियम बहुत कुछ वुद्ध-पूर्व सन्यासी-सम्प्रदायोंसे लिए गये होंगे, और इस तरह काफी प्राचीन है. सकते है। इसमें सन्देह नहीं कि महात्माकी नई कहानियाँ (विशेषकर जो शुरूमें आई हैं) काफी प्राचीन है। पर इन खन्धकोंके भीतर ऐसी बातें है जिनसे सिद्ध होता हैं कि इनका संकलन प्रतिमोक्षोंके बहुत बाद हुआ है। विनय-पिटकके इन ग्रन्थोंका ब्राह्मण-ग्रन्थोसे बहुत मेल है, और पण्डितोंने वैदिक सूत्रग्रन्थों के नियमों के साथ इन नियमोंका मनोरंजक सान्य दिखाया है। ___ परिवारका अर्थ है परिशिष्ट । असल में यह बहुत बादका बना हुआ ग्रन्थ है। सम्भवतः किसी सिंहली भिक्षुने इसे लिखकर विनय-पिटकमें जोड़ दिया है। इसमें अनुक्रमणिका परिशिष्ट आदि हैं; यह बहुत कुछ वेद और वेदांग अन्योंके व्यवस्था की थी जिनमें पहला यह है-'यह प्रवज्या भिक्षा माँगे भोजनके निबने है, इसके ( पालनमें ) जिंदगीभर तुझे उद्योग करना चाहिए । हाँ ( यह). अधिक लाभ भी (तेरे लिए विहित है)-संघ भोज, (वेरे) उद्देश्यसे बना भोजन, निमंत्रण, शलाका भोजन, पाक्षिक (भोज), उपोसथके दिनका (भोज), प्रतिपदका भोज" (-राहुलसांकृत्यायनका अनुवाद)। जय बुद्धदेवको यह नियम करते हुए बताया गया है, उस समयका प्रसंग यह है कि उस समय राजगृहमें उत्तम भोजोंका सिलसिला चल रहा था। तब एक ब्राक्षणके मनमें ऐसा हुआ--यह शाक्यपुत्रीय (बौद्ध) श्रमश (साधु ), शील और आचारमें आररामसे रहनेवाले, सुंदर भोजन करके शान्त शय्याओंमें सोते है; क्यों न मैं भी शाक्यपुत्रीय साधुनोंमें साधु व !" इत्यादि ( अनुवाद, राहुलसांकृत्यायन)। प्रसंगसे स्पष्ट है कि ये उन्तम भोज रईसोंके ही निर्म- अणमें होते होंगे। इसलिए मेरा यह कहना कि “मिक्षुको नियमानुसार मिझार ही निर्भर रहना चहिए, साथ ही वह बड़े बड़े रईसोका निमंत्रण भी स्वीकार कर सकता है" भित्तहीन नहीं है। मैं समझता हूँ, आदरणीव मदन्त आनंद इस सफाई सन्तुष्ट हो जायेंगे ।