पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२१७

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१९४ हिन्दी साहित्यकी भूमिका पाली भाषावाले पातिमोरखसे बहुत कुछ मिलते हैं। वर्तमान पातिमोक्खमें २२७ नियम हैं, जिनमें १५२ निश्चय ही प्राचीन होंगे। . महावग्ग और चुलगको खन्धक (स्कन्धक) कहते हैं। असलमें ये भी सुत्त-विभंगकी भाँति मर्यादा पालनेके लिए ही लिखित हुए थे। इनमें संघकी व्यवस्थाके नियम हैं। विभंगों में बताया गया है कि भिक्खु कैसे रहेगा, कैसे खायेगा, कैसे इसेगा, कैसे चीवर धारण करेगा, क्या सोचेगा और क्या नहीं सोचेगा इत्यादि । खन्धकोंमें संघके नियम, उपोसथों में भाग लेनेके नियम. वर्षावासके नियम, पादुकाधारण, रथारोहण, और वस्त्रोंके व्यवहारके विधि- निषेधोंका विवरण है। चुल्लबग्गके प्रथम नौ वर्गों में संघके भीतर छोटे-मोटे मयदाभंगजन्य अपराधोंका प्रतिविधान है। इनमें भिक्षुओंके आपसी झगड़े, उनके एक दूसरेके प्रति कैसे व्यवहार होने चाहिए आदि बातें बताई गई हैं। दसवें वर्गमें भिक्षुणियोंके नियम बताये गये हैं। पातिमोक्खोंमें एक काफी जटिल भिक्षु-समाजका परिचय मिलता है, और खन्धकोंमें आकर वह समाज और भी जटिलतर हो गया है। छोटीसे छोटी बातका भी विचार किया गया है। भिक्षुको नियमानुसार भिक्षापर ही निर्भर रहना चाहिए; पर साथ ही वह बड़े बड़े रईसोंका निमन्त्रण भी स्वीकार कर सकता है।' १ मेस यह वक्तव्य अगस्त १९३९ के विशालभारतमें प्रकाशित हुआ था। उसपर । मालोचना करते हुए बौद्धशास्त्रों के विशेषज्ञ श्री भदन्त आनंद कौसल्यायनने नवंबर १९३९ के विशाल भारतमें पक नोट लिखा था। उक्त विद्वानका कहना है कि “इस अंशमें (पाति- मोक्खों और खंधकोंमें वर्णित जटिल भिक्षुसमाजके उपपादक वाक्योंमें ) द्विवेदीजीकी लेखनी उतनी जिम्मेदार नहीं रही। क्या हम जान सकते हैं कि पातिमोक्खका कौन-सा नियम है जिसका अर्थ पंडितजीने 'भिक्षापर ही निर्भर रहना चाहिए' किया है और वह कौन-सा दूसरा नियम है जिसका अर्थ पंडितजीने बड़े बड़े रईसोंके निमंत्रण भी स्वीकार कर सकता है' किया है !" भदन्त आनंद जैसे पंडितने इसकी सफाई मांगी है, इस लिए अपनी बात समझा देना मेरा कर्तव्य हो जाता है । वस्तुत: भदन्तजीने जल्दीमें इस अंशको पढ़ा है। ऊपरके पैराग्राफसे स्पष्ट है कि मैंने जो यह लिखा था कि "भिक्षुको भिक्षापर ही निर्भर करना चाहिए" इत्यादि, उसका संबंध प्रतिमोक्षोंसे नहीं बल्कि खन्धको (महावग्ग और सुल्लवग्ग ) से है। महावग्गमें (शरा६ ) स्पष्ट ही लिखा है कि बुद्धदेवने चार निश्चयोंकी