पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२१५

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.. हिन्दी साहित्यकी भूमिका या दीघागम ( दीर्घागम ), मज्झिम-निकाय (मध्यमागम ), संयुत्तनिकाय (संयुक्तागम ), अंगुत्तरनिकाय (एकोत्तरागम), खुद्दकनिकाय (क्षुद्रकागम)। (५) अङ्ग या श्रेणीके अनुसार नौ प्रकार-सुत्त (सूत्र), गेय्य (गेय ), वय्याकरण (व्याकरण ), गाथा, उदान, इतिवृत्तक ( इत्युक्तक), अब्भुतधम्म ( अद्भुतधर्म), वेदल्ल (वेदल्य)। (६) पाठ या परिच्छेद-गणनाके अनुसार ८४,००० धम्मखन्छ या धर्मस्कन्ध । त्रिपिटक पंडितोंने विचार करके देखा है कि जब तक बुद्धदेवका धर्म लोकन्यापी नहीं हुआ था, तब तक वे धर्मके विषयमें ही चिन्ता करते रहे। धीरे धीरे उनका धर्म जब फैल गया और बहुतसे शिष्य उनके निकट एकत्र हो गये, तो उन्होंने उनमें नियमके प्रति एक अनास्थाका भाव लक्ष्य किया, और वे धर्म और विनय (discipline) दोनोंपर जोर देने लगे। इसके बाद उन्होंने अकेले धर्म शब्दका व्यवहार कभी नहीं किया । भिक्षुओंको भी धर्म और विनय दोनोंका प्रचार करनेको कहते रहे । प्रथम संगीतिके विवरणमें कहा गया है कि महा- काश्यपने भिक्षुसंघसे पूछा कि धर्म और विनयमेंसे पहले किसका पाठ होगा. तो भिक्षुओंने कहा था कि विनय ही बुद्ध्यासनकी आयु है, विनयके अभावमें बुद्ध शासन टिकेगा नहीं। इस प्रकार बुद्ध के निर्माणके बाद ही भिक्षुसंधर्भ विनयकी जबरदस्त प्रतिष्ठा हो गई थी। प्रथम संगीतिमें धर्म और विनयकी ही चर्चा हुई थी; किन्तु बुद्धकी मृत्युके बहुत बाद उनके अनुभवी शिष्योंने धर्मके अंश-विशेष (अर्थात् दार्शनिक चिन्ताके अनुकूल विषयों) का अवलम्बन करके एक नये साहित्यका उद्भावन किया । इसका नाम रखा गया अभिधम्म (अभिधर्म)। बुद्ध-वचनोंके जो अंश 'धर्म' नामसे प्रचलित थे, उन्हींको सूत्र या सूत्रान्त नाम या गया। जिसे बुद्धदेवने विनय नाम दिया था, वह उसी नामसे प्रचलित परेन अशोक संगीतिके अवसरपर ये तीनों भाग तीन पृथक् पृथक् नामोंसे . प्रत्येकको एक-एक पिटक या पिटारा कहा गया। इन्हीं तीनोंको ऊपर जो कि इन्हीं तीन पिटारों में बुद्धदेवके अमूल्य विचार सुरक्षित है। बौद्ध-साहित्य मानविनयमें, चित्तविषयक उपदेश सूत्रमें और प्रशा-सम्बन्धी विवरणसे स्पष्ट है, यह क्षित हैं।