पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२१४

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बौद्ध साहित्य १९१- सकता कि यही बौद्धोंका प्राचीनतम साहित्य है। चीनी तुर्किस्तान में पाये गये कुछ संस्कृत ग्रन्थोंने पंडितोंको यह सोचनेको बाध्य किया है कि पाली और संस्कृत दोनों ही किसी एक ही सामान्य भाषासे संग्रहीत ग्रन्थों के रूपान्तर हो सकते हैं। जो बात निस्संकोच कहीं जा सकती है वह यह है कि अन्यान्य सम्प्रदायक प्रामाणिक प्राचीन संग्रहोंके अभाव में यही संग्रह (पालीवाला) हमारे लिए बुद्ध-धर्मके मूल रूपको समझने में सर्वाधिक सहायक है। इनके अतिरिक्त संस्कृत और अर्द्ध-संस्कृतमें लिखे हुए अनेकानेक बौद्ध-ग्रन्थ पाये गये हैं और अब भी खोजकर निकाले जा रहे हैं। इनमेंसे अधिकांश ग्रन्थों के अनुवाद चीनी, तिब्बती और मंगोलियन भाषाओंमें सुरक्षित हैं। सच पूछा जाय तो ये अनुवाद ही बौद्धसंस्कृत-ग्रन्थोंकी जानकारीके प्रधान सहायक हैं। इनकी चर्चा हम इसी प्रबन्धमें यथास्थान करेंगे। पाली-साहित्य हिन्दीमें हम जिसे ' पाली' लिखा करते हैं वह मूल शब्द ' पालि' है जो पक्तिका वाचक है। बौद्ध ग्रन्थोंके अनुसार समग्र बौद्ध-साहित्य दो भागों में विभक्त है-(१)पालि या पिटक; (२) अनुपालि या अनुपिटक । इसके अनुसार पालि बुद्ध-वचनयुक्त त्रिपिटकको कहते हैं, और अनुपालिमें वह समग्र साहित्य है जो है तो पिटकके बाहर, पर जिसका आधार या उपजीव्य त्रिपिटक ही हैं। इसमें अर्थकथा, आचार्यवाद, कोष, संग्रह, वंश, टीका-अनुटीका, ज्याकरण, दीपिका, ग्रंथि इत्यादि सम्मिलित हैं। इनमें त्रिपिटक ही प्रधान हैं। इनमें बुद्धदेवके मूल वचन संगृहीत माने जाते हैं। बुद्ध-वचनोंके छः प्रकारके विभाग किये गये है। श्री बेनीमाधव बाडुया महाशयने ये विभाग इस प्रकार गिनाये हैं:- (१) उपदेश और आदेशके अनुसार बुद्ध-वचन दो प्रकारके हैं: और विनय। (२) काल पर्याव-क्रमसे तीन प्रकारके हैं: प्रथम प्राप्तिके पश्चात् पहले पहल निकले हुए वाक्य), अन्तिम (मृत्यु-समय पासका और मध्यम ( अर्थात् इन दोनोंके बीच समस्त जीवनके दिये आदि-ग्रन्थों में (३) पिटकके अनुसार तीन प्रकार : सुत्त (सूत्र), विना एक संस्कृत, एक (अभिधर्म) है। (४) निकाय या आगमके अनुसार पाये जा चुके हैं जो