पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२११

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बौद्ध-साहित्य वैदिक साहित्यकी भाँति बौद्ध साहित्य भारतवर्ष के प्रागैतिहासिक युगसे सम्बद्ध नहीं है । इस साहित्यका निर्माण जिन दिनों हुआ था, उस कालको निस्संदिग्ध रूपसे पंडितोंने ऐतिहासिक युग माना है। बुद्धदेवकी मृत्यु ईसवी 'पूर्व पाँचवीं शताब्दीके उत्तरार्द्ध में हुई थी। लगभग पचास वर्षों तक वे धर्म- .प्रचार करते रहे। इस प्रकार उनके धर्म प्रचारका समय निश्चित रूपसे ईसवी पूर्वकी पाँचवीं शताब्दीका मध्य भाग है। एक श्रेणीके बौद्ध लोगोंका विश्वास है कि लंका, स्याम, ब्रह्मा आदि देशों में प्रचलित और पाली भाषामें लिखित जो बौद्ध-ग्रन्थ मिले हैं, उनमेंके प्रधान प्रधान बुद्धदेवके श्रीमुखसे उच्चरित हुए थे। यदि यह विश्वसनीय हो, तो पाली-साहित्यके मुख्य भागका काल आसानीसे ई० पू० पाँचवीं शताब्दीमें मान ले सकते हैं। लेकिन स्वयं बौद्ध-ग्रन्थोंमें ऐसी बातें हैं जो ऐसा विश्वास होने देने में बाधक हैं। इतना तो ग्रन्थोंसे स्पष्ट ही है कि बुद्धदेवने स्वयं कोई ग्रन्थ नहीं लिखा । पाली-साहित्य ( वस्तुत: 'पालि- साहित्य') में जो कुछ है वह बुद्धदेवके वचनोंका संग्रह या उसकी व्याख्या है। ग्रन्थोंसे पता चलता है कि ये संग्रह समय-समयपर आहूत बौद्ध संगीतियों या सम्मेलनों में बड़े-बड़े आचार्यों के निर्णयानुसार संग्रहीत हुए थे। पाली-ग्रन्थोंमें कुल मिलाकर ऐसी नौ संगीतियोंका उल्लेख है ! इनमेंसे जिन कई मुख्य संगीतियोंका आलोच्य विषयके साथ बहुत अधिक सम्बन्ध है, उन्हींकी चर्चा यहाँ की जायगी। प्रथम संगीति बुद्धदेवके महानिर्वाणके कुछ ही दिनों बाद राजगह (राजगृह) में स्थविर महाकाश्यपके उद्योगसे हुई थी। उसका उद्देश्य धर्म और विनयका संस्थापन था । इस संगीतिका सबसे प्राचीन विवरण चुल्लबग्गा (जिसकी चर्चा