पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२१०

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बौद्ध साहित्य आगे की जायगी) में पाया जाता है। चुल्लबग्ग स्वयं ही विनय पिटकका एक अङ्ग है, इसलिए इतना तो निर्विवाद है ही कि समूचा विनय-पिट सम्पूर्णतः इस संगीतिकी पूर्ववर्ती बातोंका ही संग्रह नहीं है। जिस बातमें सबसे कम आपतिकी गुल्जाइश है, वह यह है कि धम्म और विनय-पिटकके प्राचीनतम भाग इसी संगीतिमें निर्धारित हुए होंगे, और यदि बुद्धदेवने सचमुच पाली-भाषामें ही उपदेश दिया था ( जिसमें बहुत से पंडित अन् संदेह करने लगे हैं) तो मानना पड़ेगा कि हमारे पास बहुत कुछ बुद्धदेवके ज्यों के त्यों कहे हुए वचन भी प्राप्त हैं। दूसरी महत्वपूर्ण संगीति बुद्ध-निर्वागके सौ वर्ष बाद वेसाली (वैशाली) में हुई थी। इसका भी सबसे प्राचीन विवरण चुल्लवग्ग में ही मिलता है; पर इसमें यह नहीं लिखा है कि यह संगीति बुद्ध-निर्वाणके सौ वर्ष बाद हुई थी। बाद के ग्रन्थों ( दीपवंश और महावंश) के अनुसार इस संगीतिका उक्त समय बताया गया है। प्रथम संगीतिमें धम्म और विनयका संकलन हुआ था पर इसमें छोटे छोटे नियमोंका। कहते हैं कि वैशालीके भिक्षुओंने दस प्राचीन नियमोका अपन्यवहार किया था, उसीके संशोधन में इस संगीतिको अधिक समय लगा। दीपवंश और महावंशके अनुसार यह संगीति आठ महीने तक चलती रही। ऊपर उल्लिखित दस नियमों के अतिरिक्त धर्म और विनयकी आवन्ति भी इस संगीतिमें हुई थी। पंडितोंका अनुमान है कि इस समय तक निश्चित रूपसे विनय और धम्म-पिटकका कोई न कोई आकार रहा होगा, क्योंकि दस निय- मोंके विचारार्थ विनय और धम्मके पूर्व-निर्णीत नियमोंकी जरूरत रही होगी और यह जरूरत किती नियम-संग्रहसे ही पूरी की गई होगी। उदाहरणार्थ वैशालीके भिक्षुओंने नियम किया था कि जहाँ नमकका अभाव होनेकी सम्भा- वना है, वहाँ उसे भी भिक्षु लोग सींगोंमें भरकर ले जा सकते हैं। अब इस बातके औचित्यके निर्णय के लिए किसी पूर्व-निति विधि-निषेधकी आवश्यकता होनी चाहिए। (श्रावस्तीमें कथित सुसविमंगके अनुसार यह बात नियम- विरुद्ध है।) बुद्धदेवने सारिपुत्रको ऐसा करनेसे मना किया था। इस प्रकार उस समय तक कुछ ग्रन्थ ( भले ही वे मौखिक हों) जरूर बन चुके थे। तीसरी संगीति, जो वृजिपुत्र भिक्षुओंके उद्योगसे आहूत हुई थी. हमारे विषयसे उतनी सम्बद्ध नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण संगीति चौथी है जिसे अशोक- संगीति भी कहते हैं । लेकाम प्राप्त परम्पराके अनुसार यही तीसरी संगीति है। कहा गया है कि जब अशोकने बौद्ध-धर्मपर अपनी आस्था प्रकट की तो