पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२०८

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रामायण और पुराण R- कि भागवतके कती बोपदेव हैं, पर असल में बोपदेवने भागवतके अनेक वचन संग्रह करके एक निबन्ध ग्रन्थ लिखा था। भागवतपुराण काफी पुराना है। सबसे बड़ी बात यह है कि अन्यान्य पुराणों की अपेक्षा यह एक हायकी रचना अधिक है। इसमें विष्णुके सभी अवतारोंका वर्णन है। विशेष रूपसे श्रीकृष्णाव- तारकी कथा है। नारदीय और बृहन्नारदीय पुराण बहुत कुछ माहात्म्य अन्थ-से हैं और उत्तर-कालीन रचना जान पड़ते हैं। मार्कण्डेय पुराण भी काफी पुराना है यद्यपि किसी किसीने इसे नवीं दसवीं शताब्दीकी रचना सिद्ध किया है। अग्निपुराण नाना विषयों का एक विशाल विश्वकोष है। नाना भारतीय विद्यायें, जिनपर लिखे गये स्वतंत्र ग्रन्थ अधिकांश लोप हो गये हैं, इसमें सुरक्षित हैं। भारतीय साहित्य के विद्यार्थियोंके लिए इसका मूल्य बहुत अधिक है। भविष्य और ब्रह्मवैवर्त पुराणोंके लक्षण नहीं मिलते। इसी प्रकार लिा पुराण भी एक कर्म-ग्रन्थ है । वाराहपुराणमें रामानुजाचार्यका उल्लेख है । ये सभी पुराण बहुत पुराने नहीं हैं। सबको अन्तिम रूप तेरहवीं-चौदहवी शताब्दीमें प्राप्त हुभा जान पड़ता है। स्कंदपुराण बहुत बड़ा और नाना दृष्टियोंसे काफी महत्त्वपूर्ण है। वामन, कूर्म, गरुड़ आदिमें पुराणों के सब लक्षण नहीं मिलते। इस प्रकार सभी पुराण बहुत प्राचीन नहीं है। इन पुराणोंसे संबद्ध बहुतसे माहात्म्य और स्तोत्रोंके ग्रन्थ है। समूचा पुराण- साहित्य बहुत विशाल है। यह वर्तमान हिन्दधर्मके समझनका सबसे बड़ा साधन हैं। यद्यपि इनमें परस्परविरोधी और अतिरंजित घटनाये बहुत हैं परन्तु बीच- बीचमें ऐसी अमूल्य साहित्यिक रचनायें हैं, और ऐतिहासिक उपादान हैं कि भारतीय साहित्यका विद्यार्थी कभी इनकी उपेक्षा नहीं कर सकता।