पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२०७

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१८६ - हिन्दी साहित्यकी भूमिका अनुसार वेदव्यासने आख्यान, उपाख्यान, गाथा, कल्प-शुद्धिसहित पुराण- संहिताकी रचना करके उसे सूत लोमहर्षणको समर्पित किया। लोमहर्षणके शिष्य थे: सुमति, अग्निवचों, मित्रायु, अकृतव्रण, शांखायन और सावर्णि । अन्तिम तीन शिष्यों मेंसे प्रत्येकने मूलसंहिताको अवलंचन करके अपनी एक एक संहिता बनाई । इन्हीं चार संहिता से सभी पुराण बने हैं। इनमें सबसे आदि पुराण ब्राह्म-पुराण ही है सलमेने मालूम होता है कि व्यासजीने मन संहिताय नहीं लिखी थीं। उन्होंने किसी एक मूल संहिताकी कथा अपने शिष्यको सुनाई थी। वहीसे शिष्य-प्रशिष्योंने इन संहिताओंकी अलग अमा रचना की। वस्तुतः पुराणोंकी परीक्षासे इतना तो स्पष्ट ही है कि मूल रूप से • काफी पुराने हैं, पर इसमें भी सन्देह नहीं रह जाता कि अपने वर्तमान रूप ये अनेक लोगों की नाना उद्देश्योसे लिखी हुई कथाओं के संग्रह है। पुराणोंके अध्ययनसे कुछ बातें तो स्पष्ट ही आधुनिक जान पड़ती है। ब्राझ पुराणको यद्यपि आदि पुराण कहा जाता है पर उसमें उड़ीसाके तीथोंके माहा. स्यका विशेष विवरण है जो निश्चय ही बादका होना चाहिए। साधारणतः सन ईसवीकी बारहवीं शताब्दी तक इसने वर्तमान रूप धारण कर लिया होगा। पद्मपुराणमें बौद्धों और जैनोंकी बातें हैं और उसके पिछले खंड और भी नये जान पड़ते हैं। विष्णुपुराणमें प्राचीनताके सभी लक्षण विद्यमान हैं। विष्णुके किसी बड़े मंदिर या मठ आदिकी चर्चा इनमें नहीं आती। रामानुजाचार्यने इस पुराणके वचन उद्धृत किये हैं। किसी किसीने अनुमान किया है कि विष्णुपुराणमें उल्लिखित कैलकिल या कैडिल यवनोंने आन्ध्रदेशमें ५०० से ९०० ई. तक राज्य किया था, अत: इस पुराणका काल नवीं शताब्दीसे अधिक पुराना नहीं होना चाहिए। पर यह केवल कल्पना ही कल्पना है, किसी ऐतिहासिक प्रमाणसे सिद्ध नहीं है। वायुपुराण संभवतः पुराने पुराणोका एक नमूना है। उसमें प्राचीनताके सभी लक्षण विद्यमान है। श्रीमद्भागवत समस्त पुराणों में अधिक प्रसिद्ध और सारे भारतमें समादत है। RANो कवित्व है, वह बहुत ही ऊँचे दर्जेका है। रामायण और महाभारतकी ने भी भारतीय साहित्यको बहुत दूर तक प्रभावित किया है। अकेले नहीं होगा जो चालीससे अधिक अनुवाद है । हिन्दीमें भी इसके दशम- इसलिए उनमें एक नुवादोंकी संख्या इससे कम न होगी। हिन्दीका गौरवभूत कान्य साहित्यको भागवतद्वारा ही प्रभावित है। किसी किसीने यह अफवाह उड़ा रखी है