पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२०६

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रामाया और पुराण है कि इन पुराणों में वैदिक कालके पूर्ववर्ती कालका इतिहास भी नहीं कहीं पाया जाता है। महाभारत बननेके पहले पुराण-जातीय ग्रन्थ वर्तमान थे, इस विषयमै अब कोई सन्देह नहीं करता। एक समय ऐसा गया है जब अन्धोंको अप्रामाणिक कहकर उड़ानेकी चेष्टा की गई थी; परन्तु अब इतिहास-अनुरागी उन्हें बहुत अमूल्य निधि मानने लगे हैं. उनमेकी बेहदी बाते उत्तरकालीन पण्डितोंकी कृति समझी जाती हैं। आते हैं लगभग डेढ़ हजार वर्ष पहलेसे लेकर आजतक पुराण बहुत अविकसित बुद्धिके लोगों के हाथमें रहे हैं और फलत: उनमें बेहूदी बातें इतनी अधिक आ घुसी हैं कि पुरणोंका मूल रूर खोज निकालना बड़ा दुष्कर कार्य हो गया है। पुराणों के लक्षण में बताया गया है कि उनमें सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित इन पांच बातोंका वर्णन होना चाहिए। पुराणोंकी देशावलियाँ और उनकी कथायें निश्चय ही बहुत पुरानी हैं। पुराण के कर्ता न्यासजी ही माने जाते हैं। पुराण नानके अन्य बहुत हैं। पुराणों और अपुराणोंकी संख्या सौसे ऊपर होगी। परन्तु सभी बड़े बड़े पुराण अट्ठारह पुराणों की चर्चा करते हैं। इनका क्रम यद्यपि सर्वत्र एक-सा नहीं है और कभी कभी यह भी देखा जाता है कि एक सूचीमें एक पुराणका नाम है और दूसरी में दूसरेका, पर साधारणतः निम्नलिखित अट्ठारह पुराणोंको प्रामाणिक माना जाता है-- १ ब्राह्म, २ पाझ, ३ वैष्णव, ४ शैव या वायवीय, ५ भागवत, ६ नारदीय, ७ मार्कण्डेय, ८ आग्नेय, ९ भविष्य, १० ब्रह्मवैवर्त, २१ लैंग, १२ वाराह, १३ स्कान्द, १४ बामन, १५ कौम, १६ माल्य, १७ गारुड, १८ ब्रह्माण्ड । यह एक मजेदार बात है कि यह सूची प्रायः सब पुराणों में दी हुई है ( देखिए विष्णु ३६, भागवत १२-१३, पन्ना० १-६२, वराह. ११२, मत्स्य०, ५३, अमि० २७२ इत्यादि)। अर्थात् यह प्रत्येक पुराण स्वीकार करता है कि उसकी रचनाके पहले अन्यान्य पुराण बन चुके थे। इन पुराणों के सिवा १८ उपपुराण बताये गये हैं, पर असलमें उपपुराणों की संख्या और भी अधिक * --- पौराणिक कथाओंके अनुसार ब्रह्माने सब पुराणोंको कल्यादिमें पहले ही उनसे मुनियोंने सुना और सुनकर भिन्न भिन्न कल्पमें अलग . लिखीं। इस कल्पके द्वापर युगके अन्तमै कलिकालके अल्पज्ञ मनुष्यों के व्यासजीने फिरसे उन वचनोका संक्षेप करके पुराण-संहितायें लिखीं। विष्णु