पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२०५

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· हिन्दी साहित्यकी भूमिका चीनी अनुवाद सुरक्षित हैं, उनसे स्पष्ट है कि रामायण ( लगभग इसी रूपमें ! बौद्धोंमें भी समाहत थी। सन् ईसवीकी पहली शताब्दीमें. विमलसूरिने रामा- राणकी कथाको आश्रय करके 'पउमचरिय' नामक प्राकृत कान्य लिखा था जो जैनधर्म और तत्त्ववादके अनूकुल रचा गया था। ६०० ई० के आसपास कंबोडिया में रामायणका धार्मिक ग्रन्थके रूपमें प्रचार पाया जाता है। कनिष्क- युगीय बौद्ध कवि अश्वघोषके बुद्ध-चरितमें ऐसे अंश हैं जो रामायणसे मिलते जुलते हैं। इन सब बातोंपरसे सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि मूल रामायण बौद्ध-युगके पहलेकी है। पुराण और उपपुराणाः पुराण शब्दका अर्थ है 'पुरानो,' इसलिए पुराण ग्रंथोंसे मतलब उन अंथोंसे है जिनमें प्राचीन आख्यायिकायें संगृहीत हों । ब्राह्मणों, उपनिषदों और बौद्ध ग्रंथोंमें यह शब्द कभी कभी इतिहास शब्दके साथ आया है और कभी कभी 'इतिहास' के अर्थ में । कौटिल्य अर्थशास्त्र (१-५) के अनुसार इतिहासमें पुराण और इतिवृत्त दोनों ही शामिल हैं। इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि पुराण इतिवृत्तसे भिन्न वस्तु है। जो हो, पुराणोंने उत्तरकालीन हिन्दूधर्मको एकदम नया रूप दे दिया है और सच पूछा जाय तो सन् ईसवीके बादका हिन्दूधर्म धीरे "धीरे पौराणिक होते होते अन्तमें संपूर्ण रूपसे पौराणिक हो गया। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि भारतीय साहित्यमें पुराण-साहित्य कोई नई चीज़ है। गौतम धर्म- -सूत्रमें (११-१९) पुराण-साहित्यकी स्पष्ट ही चर्चा है, और आपस्तंबीय धर्मसूत्रमें तो पुराणोंसे कई श्लोक उद्धृत किये गये हैं। एक ऐसा ही श्लोक 'भविष्यत्-पुराण'से उद्धृत किया गया है । इसलिए 'भविष्य-पुराण' जैसे सर्वजन स्वीकृत आधुनिक पुराण भी कितने प्राचीन हैं, यह सहज ही अनुमान किया जा सकता है। वर्तमान भविष्य-पुराणमें यह श्लोक नहीं मिलता, पर उससे मिलता जुलता :लोक खोज निकालना मुश्किल नहीं है। यह तो निर्विवाद है कि कमसे कम पाँचौं शताब्दी ईस्वीपूर्वके पहले ये धर्मसूत्र बन गये थे, इसलिए इस कालके पहले भी पुराण-जातीय ग्रन्थ रहे होंगे, यद्यपि उनका आकार-प्रकार हू-बहू वही नहीं होगा जो आजके पुराणोंका है। पुराण-ग्रन्थ काफी लोक-प्रचलित रहे हैं इसलिए, उनमें परिवर्तन परिवर्धन भी यथेष्ट हुआ है। परन्तु इसीलिए पुराण- साहित्यकी प्राचीनताएर सन्देह नहीं किया जा सकता। विद्वानोंका अनुमान