पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२०२

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रामायण और पुराण महाभारतकी भाँति ही रामायणने भी भारतीय जीवनको बहुत अधिक प्रमा- वित किया है। परन्तु महाभारत जिस प्रकार अनेक कवियोंकी लेखनीसे लिखे हुए अनेक काम्यों का विराट् विश्वकोष है, उस प्रकार रामायण नहीं है। साराका सारा काब्य प्रायः एक ही हाथका लिखा हुआ है। प्रक्षिप्त अंश इसमें भी है, पर वह महाभारतसे भिन्न जातिका है। विश्वास किया जाता है कि यह वैदिक साहित्यके बाद मानव-कविका लिखा हुआ पहला काव्य हैं। इसीलिए इसके रचयिता वाल्मीकिको आदि कवि और इसे आदि-कान्य कहते हैं। विद्वानोंकी परीक्षासे भी यह सिद्ध हुआ है कि रामायण सचमुच काव्य (अलंकृत काव्य या ornate poetry ) जातिके ग्रंथामें सबसे पहला है। वाल्मीकि सचमुच ही एक कवि रहे होंगे, इस विषयमै विद्वानों में मतभेद नहीं है। यह भी संभव है कि मूलमें इस कान्यका जो रूप रहा हो वह महाभारतसे पूर्ववर्ती हो, परन्तु उसका वर्तमान रूप महाभारतके वादका है। कहते हैं कि संसारके समूचे साहित्यमें इस प्रकार लोकप्रिय काव्यजातीय ग्रंथ नहीं है। समचा भारतवर्ष एक स्वरसे इसे पवित्र और आदर्श काव्य ग्रंथ मानता है और सम्पूर्ण भारतीय साहित्यका आधा इस महाकाव्यके द्वारा अनुप्राणित है । काब्यके आरम्भ में ही ऐसी भविष्यवाणी की गई है जो अक्षरशः सत्यं सिद्ध हुई है। प्रत्येक युगके आचार्य, कवि और नाटककार इस महाग्रन्थसे चालित हुए हैं; कालिदास और भवभूतिकी रचनाओंमें इसका प्रभाव है और चौदहवीं शताब्दीके बादके लोक-साहित्यमें इसका बहुत अधिक प्रभाव विद्यमान है। लोक-जीवन- पर भी इसका जबर्दस्त प्रभाव है। लोकप्रिय होनेके कारण इसमें निरन्तर कुछ न कुछ प्रक्षेप होते रहे हैं और इस प्रकार इसका बर्तमान आकार २४०००