हिन्दी साहित्यकी भूमिका
आजसे लगभग दो हजार वर्ष पहले महाभारतको वर्तमान रूप प्राप्त हो चला था। परन्तु महाभारतकी अनेक कहानियाँ उतनी ही पुरानी हैं जितने कि स्वयं वेद । महाभारतके कालके सम्बन्धमें नाना विचारोंकी अबतारणाके बाद प्रो विण्टरनिल्ज़ निम्नलिखित नौ सिद्धान्तोंपर पहुंचे हैं:---- (१) महाभारतको कितनी ही पौराणिक कहानियाँ, काम्य और वर्णनात्मक कथाएँ वैदिक काल तक पहुँचती हैं। (२) लेकिन वैदिक कालमें 'भारत' या 'महाभारत' नामक किसी काव्यका अस्तित्व नहीं था। (३) नीति-सम्बन्धी कितनी ही सूक्तियाँ और कथाएँ, जो वर्तमान महाभारतके अन्तर्गत संगृहीत हैं, वैराग्य-प्रवण सम्प्रदायों (जैन, बौद्ध आदि) से ग्रहण की गई हैं। इनमेंसे कितनी ही ईसवी सन्से पूर्वकी छठी शताब्दी तककी हो सकती हैं। (४) यदि ई० पूर्वकी छठीसे लेकर चौथी शताब्दी तक कोई महाभारत नामक काव्य-ग्रन्थ रहा भी हो, तो यह बौद्धधर्मकी आवास-भूमिमें अपरिचित ही था, क्योंकि बौद्ध- ग्रन्थोंमें इसकी कोई चर्चा नहीं मिलती । (५) ई० पूर्वकी चौथी शताब्दीके पहले महाभारत-काव्यके अस्तित्वका कोई निश्चित प्रमाण नहीं पाया जाता। (६) सन् ई०के पूर्वकी चौथी शताब्दीसे लेकर ई० सन्के बादकी चौथी शताब्दी तक महाभारत बनता और संग्रहीत होता रहा । सम्भवतः क्रमशःही इसने वर्तमान रूप धारण किया था। (७) ई० सन्की चौथी शताब्दीमें महाभारतने सब मिलाकर यह वर्तमान रूप धारण कर लिया था। (८) बादकी शताब्दियोंमें भी छोटे-मोटे आख्यान और फुटकर श्लोक, कुछ न कुछ, मिलते ही रहे। (९) सारे महाभारतका एक काल नहीं है । काल-निर्णय करते समय इसके प्रत्येक भागका काल-विचार अलग अलगसे होना चाहिए । no by