पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२००

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महाभारत क्या है ? mam लगभग अपने इसी रूपमें वर्तमान होंगे, क्योंकि बिना इन सबको मिलाये महाभारतके श्लोकोंकी संख्या एक लाख नहीं हो सकती ! ४५०-५०० ई. के आस पासके ऐसे अनेक दान-पत्र पाये गये हैं जिनमें महा- भारतके श्लोक धर्मशास्त्रके विधान मानकर उद्रत किये गये हैं। उत्तरी बौद्ध- धर्मकी अनेक पुस्तके, जो मूल संस्कृतमें टुप्त हो गई हैं पर चीनी अनुवादके रूपमें सुरक्षित हैं, इस बातकी प्रमाण हैं कि ३३० ई० के लगभग भारतीय समाजमें महाभारतपर बड़ी श्रद्धा थी! जो ग्रन्थ ई० सन्की पाँचवी शताब्दी में आजका वर्तमान रूप धारण कर गया था और इस प्रकार श्रद्धा और आदरका ग्रन्थ हो चुका था, उसने निश्चय ही कई सौ वर्ष पहले रूप-परिवर्तन करना बन्द कर दिया होगा। इसीलिए पंडितोंका अनुमान है कि कमसे कम आजसे दो हजार वर्ष पहले महाभारतको यह विशाल रूप प्राप्त हो गया होगा। महाभारतके जितने रूप हैं, उनमें दो मुख्य हैं : उत्तरी रूप और दक्षिणी रूप । इतना निश्चित है कि किसी एक ही मूल रूपके ये दो रूपान्तर अति- प्राचीन कालमें पृथक् हो गये थे। उत्तरी रूपान्तरके कई उपभेद हैं जो मूलतः एक होकर भी कई बातोंमें अपना विशेष रूप रखते हैं। काश्मीरमें उत्तरी रूपान्तर दो उपभेदोंमें बँट गया है: शारदामें लिखा हुआ और देवनागरी लिपिमें लिखा हुआ। पूर्वी प्रान्तोंमें आकर उत्तरी महाभारतने तीन भिन्न भिन्न रूप ग्रहण किये हैं : नेपाली, मैथिली और बंगाली । ये तीनों रूप अपनी अपनी विशेष लिपियोंमें लिख पाये जाते हैं। युक्तप्रान्त और मध्य-प्रदेशमें उत्तरी महा- भारतका एक सामान्य रूप पाया जाता है जिसे पंडिताने देवनागरी रूपान्तर नाम दिया है। इस प्रकार उत्तरमें आकर महाभारतने छः भिन्न भिन्न रूप धारण किये हैं। दक्षिणी महाभारतके तीन मुख्य रूप हैं.---मलयालम, तेलुगु और ग्रन्थ- लिपिमें लिखा हआ। तेलुग और ग्रन्थ लिपियोंके पाठ प्रायः मिलते हैं: पर मलयालमका महाभारत इन दोनोंसे अलग है । किसी किसी पंडितके मत अन्तिम महाभारत अपने मूल रूपके बहुत निकट है। महाभारतका काल स्वभावतः ही यह प्रश्न हो सकता है कि महाभारतका काल क्या है? जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है, निश्चयपूर्वक इतना ही कहा जा सकता है कि