पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१९९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१७८ हिन्दी साहित्यकी भूमिका आपकी जीवनी शक्तिसे परिपूर्ण वनस्पतियों और लताओंका अयानपरिवर्धित विशाल वन है जो अपनी उपमा आप ही है। मूल कथानकमें जितने भी चरित्र ने अपने आप में ही पूर्ण हैं। भीष्म जैसा तेजस्वी और ज्ञानी, कर्ण जैसा गम्भीर और वदान्य, द्रोण जैसा योद्धा, बलराम जैसा फक्कड़, कुन्ती और द्रौपदी जैसी तेजोहात नारियाँ, गान्धारी जैसी पतिपरायणा, श्रीकृष्ण जैसा उपस्थित-बुद्धि और गम्भीर तत्त्वदर्शी, युधिष्ठिर जैसा सत्यपरायण, भीम जैसा मस्तमौला, अर्जुन जैसा वीर, विदुर जैसा नीतिज्ञ चरित्र अन्यत्र दुर्लभ है। मूल कथानकको छोड़ दिया जाय, तो भी महाभारतके वर्णित नल और दमयन्ती, सावित्री और सत्यवान , कच और देवयानी, ययाति और चित्रांगद आदि चरित्र संसारके साहित्यमें बेजोड है। महाभारतका शायद ही कोई उत्तम चरित्र महलोंके भीतर पलकर चमका हो। सबके सब एक तूफानके भीतरसे गुजरे हैं। अपना रास्ता उन्होंने स्वयं बनाया है और अपनी रची हुई विपत्तिकी चिन्तामें वे हँसते हँसते कूद गये हैं। महाभारतका अदनासे अदना चरित्र भी डरना नहीं जानता । किसीके चेहरेपर कभी शिकन नहीं पड़ने पाती। पाठक सहाभारत पढ़ते समय एक जादू-भरे वीरत्वके अरण्यमें प्रवेश करता है जहाँ पद-पदपर विपत्ति है, पर भय नहीं है। जहाँ जीवनकी चेष्टाएँ बार बार असफलताकी चट्टानपर टकराकर चूर चूर हो जाती हैं, पर चेष्टा करनेवाला इतोत्साह नहीं होता; जहाँ गलती करनेवाला अपनी गलतीपर गर्व करता है, प्रेम करनेवाला अपने प्रेमपर अभिमान करता है और वृणा करनेवाला अपनी घृणाका खुलकर प्रदर्शन करता है। वहाँ सरलता है, दर्प है. तेज है, वीर्य है। महाभारतकी नारी अपने नारीत्वपर अभिमान करती है. पुरुष इस अभिमानकी रक्षाके लिए अपनेको मृत्युके हाथ सौंप देता है। प्राचीन भारतका, उसके समस्त दोष-गुणोंके साथ, ऐसा सुन्दर और सच्चा निदर्शन दूसरा नहीं। महाभारतका वर्तमान रूप इस बातका निश्चित प्रमाण पाया गया है कि सन् ईसवीकी ५ वीं शताब्दीमें महाभारत अपने वर्तमान रूपको धारण कर चुका था । सन् ४६३ ई०(या अधिकसे अधिक ५३२ ई०)का एक दान-पत्र पाया गया है जिसमें स्पष्ट लिखा है कि वेदव्यासने महाभारतमें एक लाख श्लोक लिखे थे। महाभारतके सबसे लम्बे शान्ति और अनुशासन पर्व और हरिवंश भी निश्चय ही उस समय