पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१९८

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महाभारत क्या है? १७७ हो चुके हैं। कई कथाएँ एक ही भाषासे तीन तीन चार चार बार अनूदित हुई हैं । शकुन्तला, ययाति, नहुष, नल, रामचन्द्र, बिदुला, सावित्री आदिकी कहा- नियाँ ( उपाख्यान) बहुत लोकप्रिय हुए हैं। इन उपाख्यानोंको पश्चिमी पंडितोंने Epic rithin Epic या ' महाकान्यके भीतर महाकाव्य' नाम दिया है। असलमें ये उपाख्यान अपने आपमें पूर्ण हैं और मानवीय मनोविकारोंके बड़े सजीव और सरत चित्र हैं। ___ ऊपर जिन कहानियोंकी चची की गई है उनके अनुवाद अँगरेजी, जर्मन फ्रेंच, इटालियन आदि भाषाओंमें बहुत समाहत हुए हैं। सन् १८१६ में एफ. बप्पने नलकी कहानी लैटिन अनुवाद के साथ प्रकाशित कराई । श्लिगल जैसे मनीषींने इस कहानीको पढ़कर लिखा था- 'मैं सिर्फ इतना ही कहँगा कि मेरी समझमें करुणा तथा भावनाकी दृष्टि से और भावोंकी कोमलला तथा विमोहक शक्तिके खयालसे नल-दमयन्तीका उपा- ख्यान द्वितीय है। इसकी रचना इस ढंगसे की गई है कि वह सबको आकर्षित करती है। चाहे वह बूढ़ा हो या जवान, उच्च जातीय हो या नीच जातीय, रसज्ञ आलोचक हो अथवा सहज-बुद्धिसे चीजोंकी पसन्द करनेवाला हो।' इसी तरह सावित्री और सत्यवानकी कहानी बाहरकी दुनिया में वहत लोक- प्रिय हो गई है। विण्टरनित्जने इस कथाके बारेमें लिखा है- 'चाहे जिस किसीने सावित्रीके कान्यकी रचना की हो, चाहे वह कोई सूत रहा हो या ब्राह्मण, वह अवश्यमेव सत्र कालोंका एक सर्वोच्च कवि था । कोई महान् कवि ही इस उत्कृष्ट महिला-चरित्रको इतने मनोमोहक और आकर्षक ढंगसे चित्रित कर सकता था, और शुष्क उपदेशककी मनोवृत्ति में पड़े बिना भाग्य और मृत्युपर प्रेम तथा पातिव्रत्यकी विजय दिखला सकता था; और प्रति- भाशाली कलाकार ही जादूकी तरह ऐसे आश्चर्यजनक चित्र हमारे सम्मुख उपस्थित कर सकता था। उज्ज्वल चरित्रोंका वन महाभारतको उज्ज्वल चरित्रोंका वन कहा जा सकता है । यह कवि-रूपी मालीका यत्नपूर्वक सँवारा हुआ उद्यान नहीं है जिसके प्रत्येक लता-पुष्प-वृक्ष अपने सौन्दर्यके लिए बाहरी सहायताकी अपेक्षा रखते हैं, बल्कि यह अपने-