पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१९७

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका धारण किया था, उन दिनों भागवत मतका प्राबल्य था। इस भागवत मतमें श्रीकृष्ण परम दैवतके रूपमें स्वीकार किये गये थे। यह दूसरी बात है कि द्वारकाके राजा श्रीकृष्ण (जो महाभारतमें अपनी कूटनीतिके लिए प्रसिद्ध है। और भागवतोंके परम दैवत श्रीकृष्ण मूलतः एक ही व्यक्ति न हों और बादमें चलकर एकमें मिल गये हों; पर इस बातमें कोई सन्देह नहीं कि वर्तमान महा- भारत में सबसे अद्भुत और सबसे विशिष्ट चरित्र श्रीकृष्णका है। भगवद्गीता जैसी महिमाशालिनी पुस्तकके वे गायक हैं। ब्राह्मण-ग्रन्थों में और वेदों में भी यत्र तत्र दो झगड़नेवाली क्षत्रिय जातियोंका उल्लेख है: ये हैं कुरु और पांचाल जातियाँ। इससे कुछ पंडितोंने अनुमान किया है कि असली महाभारतकी लड़ाई कुरुओं और पांचालोंकी थी, पाण्डवोका स्थान उसमें गौण था। यह ध्यान देनेकी बात है कि पाण्डवोंमेसे कोई भी पाण्डके अपने पुत्र नहीं थे, सभी कुन्ती था माद्रीके पुत्र थे। हिन्दुओंमें उन दिनों एक स्त्रीके बहुविवाहका एकमात्र उदाहरण इन पाण्डवोहीके घर पाया जाता है, इसीलिए कुछ वायुविकारग्रस्त आलोचक यहाँ तक कह गये हैं कि पाण्डव वास्तव में उत्तर-पार्वल्य प्रदेशके अधिवासी थे (जिनमें स्त्रीका बहुविवाह अब भी प्रचलित है) और कुन्तीने वहींसे इनकी आमदनी की थी और अपने पुत्र बताकर दुर्योधन के राज्यका हकदार बनाना चाहा था! जो कुछ हो, इस बार में प्रायः सभी पंडित एकमत हैं कि महाभारतीय कहानीका स्वर बादमें बदल गया है। यही कारण है कि दुर्योधन, कर्ण आदि पुरुषोंके दो दो प्रकारके चरित्र महाभारतने ही, पास ही पास, लिखे पाये जाते हैं। अभी अभी लिम्वा मिलता है कि कर्णके समान उदार, बहुश्रुत, वाग्मी और सत्पुरुप दूसरा नहीं था (और समग्र महाभारतके चरित्रोंपर विचार करनेसे सच- मुच कणे एक अद्वितीय मनुष्य जान पड़ते हैं) और थोड़ी देर बाद ही बताया जाता है कि उसके जैसा दम्भी और अन्यायकारी भी दूसरा नहीं था! संसारमें महाभारतकी कथाओंकी लोकप्रियता महाभारतकी मूल कहानीके इर्द-गिर्द बहुत-सी प्राचीन वीर-गाथाएँ, नीति और उपदेशकी कथाएँ, वैराग्य और मोक्षको समझानेवाली कहानियाँ आ जमी हैं। इनमेंसे बहुतेरी बहुत प्राचीन हैं। इन कहानियोंके सभ्य भाषाओंमें अनुवाद