पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१९६

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महाभारत क्या है? उपयुक्त कथासे इतना स्पष्ट है कि महाभारतको तीन बार तीन वक्ताओन तीन प्रकारके श्रोताओं को सुनाया था। आदिपर्व में बताया है कि उपाख्यानोको छोड़कर २४००० लोकोंकी संहिता उन्होंने लिखी है। फिर उसी अध्यायमें यह भी कहा गया है कि न्यासदेवने ६० लाख श्लोकका कान्य लिखा था जिसमें ३० लाख देवोंके लिए, १५ लाख पितरोंके लिए, १४ लाख गन्धर्वा के लिए और बाकी १ लाख मनुष्यों के लिए लिखे गये थे (१-१-२०१)। इन्हीं एक लाख लोकोका यह विशाल काम्य आजका महाभारत है, इसीलिए इसे 'शतसाहसी संहिता' या 'सौ इजार श्लोकोंका संग्रह-ग्रन्थ' कहा जाता है। आगे चलकर . पाठकोंको मालूम होगा कि इस बातका पक्का सबूत पाया गया है कि कमसे कम दो हजार वर्ष पहले महाभारतमें एक लाख लोक मोजूद थे। __ कलकत्तेसे डरे हुए महाभारतके १८ पाम ९००९२ लोक हैं। इसमें हरि- वंश भी, जो महाभारतका खिल या परिशिष्ट है, जोड़ दिया जाय तो श्लोक- संख्या १०६४६६ हो जाती है। हरिवंशमें एक भविष्यपर्व नामक पर्व है: पंडितोंकी रायमें यह पर्व बहुत बादका प्रक्षिप्त होना चाहिए। अगर इस पत्रके श्लोकोंको छोड़ दिया जाय, तो सम्पूर्ण महाभारत और हरिवंशमें कुल मिलाकर १०.१५४ श्लोक होते हैं । यह संख्या एक लाखके बहुत निकट है। बम्बईसे छपे हुए महाभारतमें इससे २०० के करीब श्लोकोंका अन्तर है। महाभारतकी मूल कहानी में परिवर्तन जब कहा जाता है महाभारतकी मूलकथाम परिवर्तन हुआ है तो इसका यह अर्थ नहीं है कि सचमुच किसीने बैठकर एक खास उद्देश्यको लेकर कहानीको बदला था। शतान्दियों तक महाभारतकी कहानी सूतों (वंदियों ) के मुख में फलती-फूलती रही। संजय भी सूत और लोमहर्षण भी सूत-पुत्र थे। अन्तिम बार वैशम्पायनने जनमेजयको बी कहानी सुनाई, उसमें निश्चयपूर्वक पाण्डवोंकी और श्रीकृष्णकी प्रशंसा थी। वर्तमान महाभारतके श्रीकृष्ण एक अदभुत व्यक्तित्व रखते हैं । पाण्डवोंकी ओरसे जहाँ कहीं अन्यायाचरण हुआ है, उसके सूत्रधार विचित्र रूपसे वे ही रहे हैं। फिर भी महाभारतमें वे भगवान् के अवतार हैं, और उनके द्वारा अनुप्रेरित अन्यायाचरणको भी महाभारतमें उनका अलौकिक चरित्र बताया गया है। जान पड़ता है कि.महाभारतने जिन दिनों वर्तमान रूप