पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१९१

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२७२ हिन्दी साहित्यकी भूमिका पर आज, यद्यपि ये अब भी सम्पूर्णतः उद्धृत नहीं हुए हैं, कोई भी संस्कृतका पण्डित इनको जाने बिना अपने को पूर्ण नहीं समझ सकता । इन विशाल लेखोंका संग्रह बीसियों जिल्दोंमें हुआ है और होता जा रहा है। फुटकर विषय __संस्कृत-साहित्यके अनेक अङ्गोंपर यहाँ कुछ भी नहीं कहा गया है। इसमें शिल्प-शास्त्र है, वास्तु विज्ञान है, क्रीडापरक ग्रंथ है, नाचने और गानेकी विद्या है, पशुओं और पक्षियों के स्वभाव और पालन-पोषणकी विद्या है, सामुद्रिक शास्त्र है, अरबी और फारसी विद्याओंका अनुवाद है, व्यवहार-शास्त्र हैं, नीति-ग्रंथ हैं और सबके ऊपर तुभाषितोंका अतुलनीय भाण्डार है। अनेक विषयोंके ग्रंथ लुत हो गये हैं, कचित् कदाचित् ये मिलते रहते हैं और प्रकाशित किये जाते है। पर अधिकांश विषयोंके ग्रन्थ नाम-शेष रह गये हैं और उनका परिचय अन्यान्य ग्रन्थों के उद्धरणोंसे मिला करता है । इसके अतिरिक्त पाली, प्राकृत और अपभ्रंयका समूचा साहित्य किसी न किसी रूपमें संस्कृतको आश्रय करके गठित हुआ था। आगके पृष्ठों में कुछ विस्तृत रूपसे इनकी चर्चा की जा रही है। अन्तिम वात जिस भाषाके ग्रन्थों की संख्या अधिकांश नष्ट हो जानेपर भी आधे लाखसे ऊपर चली गई है, और इन ग्रन्थोमस सैकड़ों ऐसे हैं जो दस हजार या उससे भी अधिक कभी लाख लाख श्लोकोंसे बने हैं. जिस भाषाके साहित्यकी रचना कमते कम पाँच हजार वर्षोंसे. अविछिन्न भावसे हो रही है, जिस भाषाके अन्यों. की रचना, पठन-पाठन और चिन्तनमें भारतवर्ष के हजारों सर्वोत्तम मस्तिष्क सैकड़ों पुश्त तक लगे रहे हैं और आज भी बीसियों देशोंके सैकड़ों मनीष्टी जिस भाषाकी ओरसे नवीन प्रकाश पाने के लिए आँखें बिछाये हुए हैं, उस भाषाके साहित्यका परिचय इन कई पृष्ठोंमें देना असम्भव है । संक्षेपमें इतना ही कहा जा सकता है कि हजारों वर्ग-मीलमें विस्तृत करोड़ोंकी वासभूमि इस महादेशकी हजारों वर्षकी चिरन्तन साधनाका सर्वोत्कृष्ट सार इस भाषामें सञ्चित है । संस्कृत भाष्य संसारकी अद्वितीय-महिमा-शालिनी भाषा है।