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संस्कृत साहित्यका संक्षिप्त परिचय Home तन्त्र-ग्रन्थ और भक्ति साहित्य म.म.पं. हरप्रसाद शास्त्रीका विश्वास है कि तन्त्र सातवीं धताब्दी में • भारत में आये। उसी समय नाथ सम्प्रदायका प्रादुर्भाव हुआ था और इनके प्रधान आचार्य, मीननाथ और गोरक्षनाथने इसके सम्बन्ध अनेक ग्रन्थ लिखें थे। किन्तु ऐसे अनेक पण्डित हैं जो इस मतने सन्देह करते हैं और विश्वास करते हैं कि अज्ञात कालसे यह मत इस देशमें वर्तमान है । हालही में स्वर्गीय श्री बुडरफके तत्वावधान में इंग्लैण्ड में तंत्र सोसायटी स्थापित हुई है जिसने तंत्र- के अनेक प्राचीन ग्रन्यों को प्रकाशित किया है। सूत्रोंके सम्बन्ध में अभी विशेष कार्य नहीं हुआ है । लेकिन तंत्रकी सैकड़ों पुस्तकें विभिन्न पुस्तकालयों में सुरक्षित है। तंत्रोंका बनना उन्नीसवीं सदी तक जारी रहा है। ___ इस युगमें एक बहुत बड़ा भक्ति-साहित्य रचत हुआ जिसका अधिक सम्बन्ध वैष्णव भक्तोंसे है। भक्ति-साहित्यके अधिकांश अन्य दक्षिण और बङ्गालमें रचित हुए। बङ्गालके गौडीय वैष्णव सम्प्रदायमें भक्तिमूलक नाटक, चम्पू, निबन्ध,- .. सब कुछ लिखे गये हैं, यहाँ तक कि व्याकरण भी हरिनामले विभूचित्त करके लिखे गये हैं। इन आचार्यों में चैतन्य महाप्रभुके शिष्य रूप सनातन और जीव , गोस्वामीका नाम विशेष रूपसे उल्लेख्य है। भक्ति-साहित्यके साथ ही एक अनोखा साहित्य इस युगनें रचित हुआ जो संसारके साहित्यमें विरल है। यह है स्तोत्र-साहित्य । जैनों, वैष्णवों, शैवों और शाक्तोंके इस विशाल साहित्यकी तुलना नहीं की जा सकती। पत्थरों और ताम्रपत्रोंका साहित्य संस्कृत-साहित्यका एक बहुत बड़ा हिस्सा पुस्तकोंके बाहर शिलाओं, पर्वत- पृष्ठों, मन्दिरों और ताम्रपत्रोंपर बिखरा हुआ है। सबसे पुरानी लिपियाँ ईसवी सन्से भी पुरानी हैं। इन्हें महाराज अशोकने लिखवाया था। परन्तु ये पाली में है। संस्कृतकी लिपियाँ इसके बाद मिलती हैं। इन लेखोंसे महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक अनुसन्धान हुए हैं। महाक्षत्रप रुद्रदामनका खुदवाया हुआ गिरनारका शिला- लेख (१५० ई०) गद्यकाव्यका उत्तम नमूना है। इसमें अलङ्कारोंका उपयोग ही नहीं है, अटकार शास्त्रका भी उल्लेख है। जब तक यूरोपियन पण्डितोंने इधर ध्यान नहीं दिया था, साहित्यका यह अङ्ग उपेक्षित और अज्ञात पड़ा हुआ था।