पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१८७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हिन्दी साहित्यकी भूमिका भी संस्कृत साहित्यकी एक विशेषता है। इसे चम्पू कहते हैं । गद्यका एक दूसरा रूप पञ्चतंत्र आदि कहानियोंके रूपमें पाया जाता है। वेनिफीने पहले पञ्चतंत्रकी कहानियोंका अनुवाद करके यूरोपियन कहानियोंसे तुलना की। उन्हें इस निष्कर्षपर पहुँचना पड़ा कि संसारकी कहानियोंका मूल भारतवर्ष ही है। पञ्चतन्त्रकी कहा- नियोंने संसारकी सारी भाषाओंके साहित्यको आश्चर्यजनक रूपमै प्रभावित किया है। पञ्चतन्त्रका माहात्म्य सारे संसारमै प्रतिष्ठित हो गया है। वेनिफीके प्रयत्नसे एक नये शास्त्रका ही जन्म हुआ जिसे कहानियोंकी अलोचनाका तुलना- स्मक साहित्य कहा जाता है। गुणान्यने लगभग दो हजार वर्ष पहले पैशाची प्राकृतमें दृहत्कथा नामक कथाका ग्रन्थ लिखा था । यह मूल ग्रन्थ खो गया है पर उसके संस्कृत रूपांतर जिनमें कथा-सरित्सागर, बृहत्कथा-मञ्जरी, वृहत्कथा-लोकसंग्रह आदि मुख्य हैं, पाये जाते हैं । इन कहानियोंका आश्रय करके संस्कृतमै अनेक कथा-ग्रंथ लिखे गये हैं। नाटक भी संस्कृतके कवियोंकी अपनी विशेषता है। ये ग्रीक नाटकोंके समान नहीं हैं। प्रो. सिलवा लेडीने कहा है कि भारतीय प्रतिभाने एक नई चीजको पैदा किया है जिसे सूत्र रूपमें 'रस' कहा जा सकता है। अर्थात् भारतीय नाटककार अभिहित नहीं करता, व्यंग्य करता है। शूद्रकका मृच्छकटिक यूरोपियन दृष्टिस भी एक सफल नाटक है | इसकी रचना सन् ईसवीकी तीसरी शताब्दीमें हुई थी। बहुत दिनों तक विश्वास किया जाता था कि यह संस्कृतका आदि नाटक है। पर अब यह विश्वास निराधार साबित हुआ है। श्री गणपति शास्त्रीने भामके नाटकोंका उद्धार किया है। ये नाटक सन् ईसवीके पहलेके हैं। मध्य एशियासे कुछ बौद्ध नाटकोंका भी उद्धार हुआ है। फिर कालिदासके नाटक हैं जिनमेंसे एक अभिज्ञान शाकुन्तल सम्पूर्ण जगत्का हृदय-हार बन चुकी है। भवभूतिका उत्तर-चरित भी समान रूपसे समाहत हुआ है। श्रीहर्षकी रत्नावली भारतीय आलोचकोंकी टेकनिककी दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। सुदाराक्षस और वेणीसंहार अपने अपने ढङ्गकी अनोखी रचनाएँ हैं। नाटक बहुत-से बने और अब भी बनते जा रहे हैं। खगाय म०म० देवीप्रसादजीने इस दिशाम अच्छा कार्य किया था। १Express. Suggest.