पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१८६

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संस्कृत-साहित्यका संक्षिप्त परिचय संहिताओंमें भेड संहिताकी एक प्रति पाई गई है, पर माम नहीं कि यह कहींसे सम्पादित होकर प्रकाशित हुई या नहीं। चरक और सुश्रुतकी संहिताओंके बाद सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ वाग्भटका अष्टाङ्गवदय है। इन तीनोंको आयुर्वेदकी वृहतत्त्रयो कहते हैं। बादमें इस शास्त्रपर असंख्य ग्रन्थ लिखे गये आर अबतक लिखे जा रहे हैं। इन अन्यौमसे कई के तिब्बती अनुवाद सुरक्षित हैं जो मूल संस्कृतमें खो गये माने जाते हैं। अधुनिक कालमें म० मा गणनायसेनका 'प्रत्यक्षशारीरम्' आयुर्वेदिक साहित्यका एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। अन्य उपवेदोंमें गान्धर्व वेदकी पुस्तकें पाई जाती हैं, पर अधिकतर बादकी लिखी हैं। शिल्प-शारकी सुस्तकों का बहुत कम पता लग पाया है। इस विषयक अधिकांश ग्रन्थ लुम हो गये हैं। कोई अन्य मेरे देखने में नहीं आया। केवल । अग्निपुराणमें जिसे उस युगका विश्वकोष कह सकते हैं, इसकी चर्चा है। तंत्र-शास्त्रकी चर्चा अन्यत्र की गई है। अलंकृत काव्य, गद्य, नाटक, चम्पू और कहानियाँ सन् ईसवीके आरम्भ तक संस्कृत कविता या तो धार्मिक उद्देश्यसे लिखी जाती थी या आध्यत्मिक उद्देश्यसे। (विण्टरनित्सका खयाल है कि बहुत प्राचीन युगमें ऐसी कबिता भी जरूर लिखी जाती थी जिसका उद्देश्य केवल रस-सृष्टि था। नल-दमयन्तीका उपाख्यान एक ऐसा ही कान्य है जो बादमें महाभारतमें अन्तर्मुक्त हो गया।) पर बादमें बात ऐसी नहीं रही। सन् ईसवीके आसपास कविता केवल रस-सृष्टिके उद्देश्यसे लिखी जाने लगी और इस क्षेत्रमें संस्कृतके कवियोंने कमाल किया । कालिदासके अमर कान्य रस-जगत्की अनमोल सम्पत्ति हैं। बादमें माघ, भारवि और श्रीहर्षकी मनोहरिणी रचनाओंने संस्कृत स्वहित्यको अधिक समृद्ध किया । सैकड़ों कवियोंके प्रबन्ध-काव्यों और उद्भट रचनाओंसे संस्कृतका साहित्य बेजोड़ हो गया है। पद्यमय कान्यके साथ ही गद्यमय काव्यका भी संस्कृत विकास होने लगा था। इतना कलामय और रिमिक' गद्य संसारकी और किसी भाषाने नहीं पैदा किया । वसुबन्धुकी वासवदत्ता और बाणभट्की कादम्बरी अपनी ढङ्गकी अनोखी रचनाएँ हैं। गद्य और पद्यके मिलाये हुए रूपमें एक और तरहकी रचना