पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१८४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

संस्कृत साहित्यका संक्षिप्त परिचय वेदान्तसूत्रके सर्वाधिक प्र व तीन शङ्करके सिदा भचालत ग्रन्थ बादका है। इस दर्शनपर सबसे प्रामाणिक अन्य इश्वरकृष्णाचाय की सांख्यकारिका है जो शायद सन् ईसवीकी पाँचवीं शताब्दी (४७९ ई.) की लिखा है। कुछ यूरोपियन पण्डितोका विश्वास है कि जैन और बौद्ध दर्शनके मूल्म सांख्य दर्शन है जो भारतवर्षका अत्यन्त प्राचीन मत है। सांख्यकारिकापर गौड़पाद और वाचस्पति मिश्रकी टीकाएँ प्रसिद्ध हैं। पदान्तसूतके सबसे बड़े और पुराने मकर अबैतवादके गुरु शङ्कराचार्य है। मसान्तसूत्रक सशंधिक प्रामापिक यूरोपियन पण्डित डायसनकी रायमै शंकर ससारके तीन महासद्धिशालियोंमेंट थे। तीन है-टो, शहर और कारत। शङ्कराचाय के मतवर बहुत बड़ा साहित्य रचिन हुआ है। शङ्करके सिवा बेदान्त आरमा अनेक भाष्यकार हुए हैं जिनमें रानानुन, मध्य, विष्णु स्वामी, कलन आदि प्रधान है। इनमें से प्रत्येक आचार्य मतकी पुस्तकों का अपना अपना विशाल संग्रह है। मन हरप्रसाद शादी अनुमान है कि प्रबक सम्प्रदायको पुस्तककी अलग अलग संख्या ५०० से कम न होगी। इन आस्तिक दर्शनों के सिवा ऐसे दर्शन भी हैं जिन्हें नास्तिक कहते थे। ये दशन न तो वेदों में ही विश्वास करते थे और न आत्मा ही। चार्वाक इनमें बहुत प्रसिद्ध है, पर इनके अन्ध सम्पूर्ण रूपसे लुप्त हो गये हैं। इसके सिवा जन् दशनको विशाल साहित्य है । वैन न्याय भारतीय दर्शनों में अपना एक महत्वपूर्ण खान रखता है। इस दर्शनकी उत्तम पुस्तक दूसरीसे छठी शताब्दी खा गई थी, हालाकि जिन सिद्धान्तोसे इन ग्रन्थोंको प्रेरणा मिली थी १ बहुत पुराने थे। बारहवीं सदी में हेमचन्द्र जैन दर्शनके प्रख्यात आचान्य हुए । अपने समय शायद भारतवर्ष में वे अद्वितीय प्रतिभाशाली दार्शनिक थे। दर्शनका विशाल साहित्य की उत्तम पुस्तक प्रेरणा मिली था संस्कृतका बौद्ध साहित्य (सन् २०० ई०-८००६०) सन् इसवीकी दसरी शताब्दीके आसपास बौद्धोंक महायान मतका प्रादुर्भाव हुआ। इस मतके अनयावियोंको शक और सीथियन राजाओंका आश्रय प्राप्त हुआ और देखते देखते यह मत भारतवर्षकी सीमा लाँघकर अन्य देशोंमें चला 1Gigantic intellects.